
जबलपुर, 4 जुलाई (हि.स.)। देश में एक जुलाई से लागू हुए तीन नए कानूनों के बाद मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने उनके प्रकाश में पहला आदेश पारित किया है। इसके अंतर्गत एक धर्मगुरु द्वारा दूसरे धर्मगुरु व उनके परिवार पर अशोभनीय टिप्पणी करने के मामले में पुलिस को जांच करने के निर्देश दिए हैं।
मप्र उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ ने गुरुवार को नवीन नागरिक सुरक्षा संहिता की व्याख्या करते हुए पुलिस को निर्देश दिए कि जांच के बाद यदि संज्ञेय अपराध बनता है, तो एफआइआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें। यदि संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो उसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दें ताकि वह उचित फोरम की शरण ले सके। इस तरह साफ है कि नए कानून लागू होने के बाद यह पहला मामला है, जिसमें हाई कोर्ट ने कोई आदेश पारित किया है।
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याचिकाकर्ता गोटेगांव जिला नरसिंहपुर निवासी अमीश तिवारी की ओर से अधिवक्ता पंकज दुबे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने गोटेगांव पुलिस में सात मई को शिकायत की थी कि दतिया निवासी धर्मगुरु गुरुशरण शर्मा तमाम साधु संतों के विरुद्ध टीका टिप्पणियां करते हैं और उन्हें इंटरनेट मीडिया के माध्यम से वायरल करते हैं। हाई कोर्ट को बताया गया कि गुरुशरण शर्मा ने बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के संबंध में अनादरपूर्वक संबोधन किया, जिसमें अशोभनीय भाषा का उपयोग किया गया। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री व उनके परिवार के लोगों के संबंध में अशोभनीय व लज्जा भंग करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इससे आहत होकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई।
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अधिवक्ता पंकज दुबे ने दलील दी कि नए कानून भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस का यह दायित्व है कि शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करे। यदि अपराध असंज्ञेय है तो शिकायतकर्ता को उसकी सूचना दे। ऐसा नहीं होने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने नए कानून की व्याख्या करते हुए यह आदेश जारी किए।
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