Author: The Legal Lab | Date: 2025-03-13 22:14:50

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) और भारतीय दंड संहिता (IPC) दोनों के तहत दोषी ठहराया जाता है, तो उसे उस प्रावधान के तहत दंडित किया जाएगा जो अधिकतम सजा का प्रावधान करता है। यह फैसला POCSO अधिनियम की धारा 42 के आधार पर लिया गया, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि जहां IPC अधिक कठोर दंड का प्रावधान करता है, वहां POCSO अधिनियम के तहत कम सजा लागू नहीं होगी।

मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने की। मामला उस व्यक्ति से संबंधित था जिसे अपनी नाबालिग बेटी के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया गया था।

  • आरोपी को IPC की धारा 376(2)(एफ) और 376(2)(आई) के तहत दोषी ठहराया गया था, जिसमें अधिकतम सजा "शेष प्राकृतिक जीवन के लिए आजीवन कारावास" है।

  • POCSO अधिनियम की धारा 3/4 के तहत भी दोषी ठहराया गया, जिसमें अधिकतम सजा आजीवन कारावास है।

ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को IPC की धाराओं के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके बाद, हाईकोर्ट ने इस सजा को बढ़ाकर "शेष प्राकृतिक जीवन तक आजीवन कारावास" कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया:

  1. IPC बनाम POCSO:

    • IPC की धाराओं के तहत दोषसिद्धि सही थी क्योंकि इसमें अधिक कठोर सजा का प्रावधान था।

    • POCSO अधिनियम की धारा 42 स्पष्ट रूप से यह कहती है कि जहां IPC में अधिक कठोर सजा का प्रावधान है, वहां POCSO अधिनियम के तहत कम सजा लागू नहीं होगी।

  2. सजा में वृद्धि का अधिकार:

    • सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट को दोषी की अपील पर सजा बढ़ाने का अधिकार नहीं था, क्योंकि राज्य ने सजा बढ़ाने के लिए अपील नहीं की थी।

    • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की सजा को "शेष प्राकृतिक जीवन तक आजीवन कारावास" में बदलकर गलती की।

  3. संशोधित सजा:

    • सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा बढ़ाई गई सजा को संशोधित किया और आरोपी को सामान्य आजीवन कारावास की सजा दी।

    • साथ ही, पीड़िता को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया।

इस फैसले का महत्व

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि यदि POCSO और IPC दोनों के तहत दोषसिद्धि होती है, तो अधिकतम सजा वाले प्रावधान को लागू किया जाएगा। यह भविष्य में सजा निर्धारण को लेकर एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करता है। इसके प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:

  1. न्यायिक स्पष्टता:

    • अब स्पष्ट हो गया है कि जब कोई अपराध POCSO और IPC दोनों के तहत आता है, तो अधिक सख्त कानून को प्राथमिकता दी जाएगी।

  2. सजा में एकरूपता:

    • यह निर्णय न्यायालयों को एकरूपता बनाए रखने में मदद करेगा ताकि अपराध की गंभीरता के अनुसार उचित सजा दी जा सके।

  3. संविधान के अनुरूप:

    • यह निर्णय कानूनी प्रक्रियाओं के अनुपालन को सुनिश्चित करता है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अनुरूप है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यौन अपराधों के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी एवं कठोर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय न्यायपालिका के समक्ष स्पष्ट करता है कि जब दो कानूनों में सजा की अलग-अलग सीमाएं हों, तो उच्चतम सजा वाला प्रावधान लागू किया जाना चाहिए। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि यौन अपराधों के दोषियों को कठोरतम दंड मिले और पीड़ितों को न्याय मिल सके।