Author: The Legal Lab | Date: 2025-04-09 23:33:05

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने एक अहम आदेश में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर और इंदिरा गांधी अस्पताल के जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया है। इन दोनों पर एक आरोपी को हिरासत में प्रताड़ित करने और उसकी चोटों को छिपाने के लिए झूठी मेडिकल रिपोर्ट तैयार करने का आरोप है।

कोर्ट का सख्त रुख

ACJM प्रणव जोशी ने PS IGI एयरपोर्ट के SHO को निर्देश दिया है कि वह मामले की निष्पक्ष जांच करे और यदि अन्य पुलिस अधिकारी भी इसमें शामिल पाए जाएं, तो उनकी भूमिका की भी जांच की जाए। अदालत ने आरोपी को 5 अप्रैल को पेश करने के बाद यह आदेश पारित किया।

मामला क्या है?

आरोपी पर आरोप था कि उसने नेपाली वोटर ID के सहारे यात्रा करने का प्रयास किया, लेकिन असल में वह यूके गया और वहां से किसी अन्य भारतीय पासपोर्ट धारक की फर्जी पहचान के आधार पर पुर्तगाली पासपोर्ट हासिल किया।
पूछताछ के दौरान आरोपी ने कोर्ट को बताया कि पुलिस हिरासत में उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया गया। कोर्ट ने जब निजी रूप से उसका मेडिकल परीक्षण किया, तो उसके हाथ, पैर और कंधे पर चोट के स्पष्ट निशान पाए गए।

मेडिकल रिपोर्ट में झोल

  • इंदिरा गांधी अस्पताल के डॉक्टर अमन गहलोत ने आरोपी की MLC रिपोर्ट में कोई चोट न पाई होने की बात कही।

  • जबकि जेल प्रशासन द्वारा की गई जांच में चोट की पुष्टि हुई।

  • इस विरोधाभास के आधार पर कोर्ट ने माना कि यह जानबूझकर किया गया कृत्य था और डॉक्टर की भूमिका पुलिस के साथ साजिश जैसी प्रतीत होती है।

अदालत का बयान

कोर्ट ने साफ कहा:

“हिरासत में हिंसा लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा पर हमला है। इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।”

जज ने आगे कहा कि यह कृत्य न केवल अधिकारों का दुरुपयोग है, बल्कि यह गंभीर संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है।

लागू धाराएं

  • पुलिसकर्मियों के खिलाफ: BNS की धारा 117, 119, 126,62

  • डॉक्टर के खिलाफ: BNS की धारा 256 (झूठी रिपोर्ट तैयार करना)

आगे की कार्रवाई

  • दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (परिवहन रेंज) को निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने का निर्देश

  • दिल्ली मेडिकल काउंसिल को डॉक्टर अमन गहलोत के मेडिकल कदाचार की जांच शुरू करने के निर्देश

निष्कर्ष

इस फैसले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय न्यायपालिका नागरिक स्वतंत्रता और पुलिस अत्याचार के मामलों में सजग और संवेदनशील है। कोर्ट का यह आदेश न केवल आरोपी के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि मेडिकल पेशेवरों की जिम्मेदारी और जवाबदेही को भी रेखांकित करता है।