
भूमिका
भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध व्यापार को रोकने के लिए वर्ष 1985 में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम को देश के सबसे सख्त कानूनों में से एक माना जाता है, जिसमें जमानत के प्रावधान भी अत्यंत सीमित हैं। NDPS अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में आरोपियों को जमानत पाने के लिए विशेष शर्तों को पूरा करना पड़ता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि NDPS मामलों में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) कभी भी नहीं दी जाती। यह टिप्पणी न्यायालय ने दिनेश चंदर बनाम राज्य हरियाणा (SLP (Crl.) No. 9540/2025) मामले में की।
क्या था मामला?
इस मामले में याचिकाकर्ता दिनेश चंदर के खिलाफ NDPS अधिनियम के अंतर्गत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। उन्होंने गिरफ्तारी से पूर्व राहत पाने के लिए अग्रिम जमानत की याचिका पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर की थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने मामले की गंभीरता और NDPS अधिनियम की धारा 37 के प्रावधानों को देखते हुए याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुआ। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि NDPS अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है और यह एक स्थापित सिद्धांत है कि ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जाती। न्यायालय ने यह भी कहा कि वह उच्च न्यायालय के आदेश में किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं देखता, जिसे सुधारने की आवश्यकता हो। परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
कानूनी दृष्टिकोण: NDPS अधिनियम और धारा 37
NDPS अधिनियम की धारा 37 यह निर्धारित करती है कि जब किसी आरोपी के खिलाफ ‘कमर्शियल क्वांटिटी’ से संबंधित आरोप हो, तो उसे जमानत तभी दी जा सकती है जब अदालत को यह विश्वास हो जाए कि वह दोषी नहीं है और वह भविष्य में ऐसा कोई अपराध नहीं करेगा। इस प्रकार की दोहरी शर्तों को पूरा कर पाना लगभग असंभव होता है, विशेष रूप से अग्रिम जमानत की स्थिति में, जब जांच अभी प्रारंभिक अवस्था में हो। यही कारण है कि NDPS मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान न्यायपालिका द्वारा लगभग अस्वीकृत किया गया है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि NDPS अधिनियम के अंतर्गत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत प्राप्त करना असंभव के समान है। यह फैसला एक नज़ीर (precedent) के रूप में कार्य करेगा और इससे यह संदेश जाता है कि नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों को लेकर न्यायालय की नीति ‘शून्य सहिष्णुता (Zero Tolerance)’ की है। आरोपी को न्यायालय से राहत केवल आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत (regular bail) की प्रक्रिया अपनाने के बाद ही मिल सकती है।
क्या करें, क्या न करें (Practical Legal Advice)
करें:
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तुरन्त आत्मसमर्पण करें और नियमित जमानत की याचिका दाखिल करें।
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सक्षम और अनुभवी वकील की सहायता लें।
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जांच में पूर्ण सहयोग प्रदान करें।
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NDPS अधिनियम की धारा 37 का विधिवत अध्ययन करें।
न करें:
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पुलिस से छिपने या भागने का प्रयास न करें।
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झूठे या भ्रामक दस्तावेज पेश न करें।
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न्यायालय को गुमराह करने की कोशिश न करें।
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मामले को हल्के में न लें—यह एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
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