
पृष्ठभूमि
भारत के संविधान में समानता और योग्यता आधारित अवसरों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। लेकिन कई राज्यों में सरकारी नौकरियों में वंशानुगत नियुक्तियों की परंपरा अब भी किसी न किसी रूप में प्रचलित थी। विशेष रूप से बिहार चौकीदारी संवर्ग (संशोधन) नियम, 2014 के तहत यह प्रावधान था कि सेवानिवृत्त चौकीदार अपने किसी परिजन या आश्रित को अपनी जगह नामित कर सकता है।
इसी नियम को चुनौती देते हुए मामला पटना हाईकोर्ट पहुंचा, जहाँ इस नियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। हाईकोर्ट के इस फैसले को बिहार राज्य दफादार चौकीदार पंचायत (मगध प्रमंडल) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
इस अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा:
“भारत का संविधान उत्तराधिकार द्वारा सार्वजनिक सेवा में नियुक्ति को रोकता है। सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता अनिवार्य है।”
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई सरकारी योजना या नियम ऐसा रास्ता बनाता है जिससे एक परिवार विशेष को बार-बार सरकारी नौकरी मिलती रहे, तो यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का सीधा उल्लंघन है।
संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 क्या कहते हैं?
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अनुच्छेद 14: भारत में सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण का अधिकार देता है।
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अनुच्छेद 16: सभी नागरिकों को सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर की गारंटी देता है।
कोर्ट ने दोहराया कि कोई भी ऐसा कानून, जो सबको समान अवसर दिए बिना सरकारी सेवा में प्रवेश की अनुमति देता है, वह संवैधानिक रूप से अवैध माना जाएगा।
पूर्ववर्ती फैसलों का उल्लेख
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कई महत्वपूर्ण मामलों का हवाला दिया:
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मंजीत बनाम भारत संघ (2021)
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दक्षिणी रेलवे बनाम ए. निशांत जॉर्ज (2022)
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गजुला दशरथ राम राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1961)
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काला सिंह बनाम भारत संघ (2016)
इन सभी मामलों में अदालत ने वंशानुगत नियुक्तियों को “पिछले दरवाजे से प्रवेश” का नाम दिया और इसे संविधान के विरुद्ध बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति की सही प्रक्रिया क्या बताई?
कोर्ट ने सरकारी नौकरियों के लिए एक स्पष्ट और निष्पक्ष प्रक्रिया की रूपरेखा दी:
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उचित विज्ञापन जारी करना
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योग्य उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित करना
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स्क्रीनिंग और शॉर्टलिस्टिंग
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निष्पक्ष और पारदर्शी चयन प्रक्रिया
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योग्यता आधारित मेरिट लिस्ट तैयार करना
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आरक्षण नियमों का पालन करते हुए नियुक्ति करना
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प्रतीक्षा सूची तैयार करना (यदि आवश्यक हो)
यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि हर नागरिक को बराबरी का अवसर मिले, न कि किसी की पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर नौकरी दी जाए।
अपवादों को लेकर स्पष्टता
हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि अनुकंपा नियुक्ति, सुरक्षात्मक भेदभाव, या मृत्यु के समय असहाय परिवार को अस्थायी राहत देने वाली योजनाएं संविधान के दायरे में कुछ हद तक स्वीकार्य हो सकती हैं, लेकिन ये अपवाद हैं, नियम नहीं।
निष्कर्ष: योग्यता ही असली उत्तराधिकार
यह फैसला न केवल बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक नज़ीर बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल वंशानुगत नियुक्ति को असंवैधानिक ठहराया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि सरकारी सेवाएं कोई पारिवारिक जागीर नहीं, बल्कि देश के हर नागरिक के लिए खुला अवसर हैं।
इस निर्णय के बाद उम्मीद की जा सकती है कि देश भर में ऐसी योजनाओं और प्रावधानों पर पुनर्विचार होगा, जो समान अवसर के सिद्धांत के विपरीत हैं।
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