Author: सोनालाल सिंह, पुलिस उपाधीक्षक (से० नि०)/ सुबोध कुमार, पुलिस उपाधीक्षक | Date: 2024-06-25 19:13:53

                                 

 नहीं होगा कोई अपराधी फ़रार, पुलिस को मिला नया हथियार 

कोई भी अपराधी अपराध करने के बाद अपने आप को गिरफ्तारी से बचाने का प्रयास करता है। वहीं पुलिस उस अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए उपक्रम करती है। गिरफ्तार नहीं होने पर पुलिस क्रमशः गिरफ्तारी वारंट, इश्तिहार, जब्ती कुर्की न्यायालय से प्राप्त कर विहित रीति से तामिला करती है। इन आदेशिकाओं का एकमात्र उद्देश्य होता है कि अपराधी/अभियुक्त न्यायलय के समक्ष हाजिर हो जाए। 

 क्या आपने कभी सोचा है कि इन प्रक्रियायाओ के अनुपालन करने के बावजूद, कोई अपराधी न्यायालय के समक्ष हाजिर नहीं होता है तो न्यायालय उस अपराधी के विरुद्ध क्या कार्रवाई करती है? 

आपके दिमाग में यह बात इसलिए नहीं आई होगी कि सामान्य प्रचलन में फरार अपराधी के विरुद्ध न तो न्यायालय द्वारा, और ना ही पुलिस द्वारा कुर्की जब्ती के बाद  गिरफ्तारी की कोशिश छोड़कर कोई अलग से कार्रवाई की जाती है,और न ही अपराधी के न्यायायिक विचारण पर इसका कोई प्रभाव पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि अपराधियों का मनोबल बढ़ता जाता है और अपराधियों में फरार होने की मनोवृति बढ़ती है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 174ए (209 भारतीय न्याय संहिता) फरार अपराधियों के बारे में ही सजा का प्रावधान करती है। वैसे अपराधी जो अपराध करके फरार हो जाते हैं और न्यायालय के आदेश के बावजूद अपनी उपस्थिति न्यायालय में नहीं देते  है , उनअपराधियों के लिए सजा का प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 174ए में की गई है। 

                                       अभी हाल ही में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय का एक न्यायदेश आया है, जिसमें कहा गया है कि पुलिस को भा.द.वि. की धारा 174ए में प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार नहीं है, जबकि धारा 174ए एक संज्ञेय अपराध है। (CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 17560 of 2023 Sumit And Another vs State Of U.P. And Others)

                  अब यक्ष प्रश्न यह उठता है कि इस  संज्ञेय अपराध में पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार क्यों नहीं है? जबकि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत पुलिस को प्रत्येक संज्ञेय अपराध में प्राथमिकी दर्ज कर अनुसंधान करने का अधिकार प्रदत्त है। इसके साथ ही यह भी देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर धारा 174ए इतना महत्वपूर्ण क्यों है, इस धारा की अन्य और क्या-क्या विशेषताएं है।

तो आइए, देखते है कि धारा 174ए भा द वि का प्रावधान क्या है।

धारा 174ए भा.द.वि. (209 भारतीय न्याय संहिता) :-दण्ड प्रक्रिया संहिता 1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैरहाज़िरी – जो कोई दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उद्घोषणा में दी गई समय पर उपस्थित होने में असफल रहता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा और जहाँ उसी धारा की उपधारा (4) के अधीन नियत घारा 302, 304, 364,367, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 400, 402, 436, 449, 459 या 460 जिसमें अपराधी को   उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) के रूप में घोषित किया गया है, वहाँ वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।

स्पष्ट है साधारण अपराधों में कोई अपराधी नियत समय पर न्यायालय में हाजिर नहीं होता तो तीन वर्ष तक का कारावास और जुर्माना दोनों से दंडित हो सकता है, वही उपधारा 4 के अधीन गंभीर अपराध की धाराओं में उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित होने के बाद उपस्थित नहीं होने पर सात वर्ष तक की सजा और जुर्माना दोनो से दंडित हो सकता है, भले ही मूल अपराध में वह निर्दोष ही क्यों न साबित हो जाए।

व्यवहारिक रूप से धारा 174A को अंगीकार करने का प्रचलन क्यों शिथिल है? इसके मूलभूत बाधाओ को समझते है - 

दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 195(1क)1 की उक्ति है कि -  195. लोक न्याय के विरुद्ध अपराध के लिए और साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराध के लिए लोक-सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के लिए अभियोजन -  (1) कोई न्यायालय -(क) 

(i) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 172 से धारा 188 तक की धाराओं के (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएँ भी हैं) अधीन दण्डनीय किसी अपराध का, अथवा

(ii) ऐसे अपराध के किसी दुष्प्रेरण या ऐसे अपराध करने के प्रयत्न का,

(iii) ऐसा अपराध करने के लिए किसी आपराधिक षडयंत्र का, 

का संज्ञान संबद्ध लोक-सेवक के, या किसी अन्य ऐसे लोक-सेवक के, जो प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है, लिखित परिवाद पर ही होगा, अन्यथा नहीं;

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195(1क)(1) में प्राथमिकी दर्ज करने के हेतु शिकायतपत्र/आवेदन समर्पित करने का अधिकार केवल लोकसेवक को प्रदान किया गया है। यहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि लोकसेवक की श्रेणी में पुलिस पदाधिकारी जिनके द्वारा अनुसंधान किया जा रहा है, वे अनुसंधानकर्ता श्रेणीगत है या वह न्यायालय जिनके द्वारा उद्घोषणा की आदेशिका जारी की गई है उस न्यायालय के लोकसेवक श्रेणीगत है। फलतः इसका उभयपक्षीय अर्थ इस तीक्ष्ण कानून को अमलीजामा पहननाने से पहले ही शिथिल कर देता है। 

उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) कौन है ?

     अपराधी के विरुद्ध पुलिसिया कारवाई के दौरान पुलिस द्वारा सबसे पहले अभियुक्त के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की जाती है, फिर अभियुक्त की गिरफ़्तारी के लिए न्यायालय से वारंट प्राप्त किया जाता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 70 के तहत न्यायालय से वारंट निर्गत होने के बाद पुलिस किसी अपराधी को गिरफ्तार करने में विफल रहती है, तब उसी अधिनियम की धारा 82 के तहत वारंट को वापस कर न्यायालय से इश्तिहार अधिपत्र प्राप्त की जाती है, जिसमे अपराधी को इश्तिहार तामिला होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर माननीय न्यायालय में हाजिर होने का निर्देश रहता है। 30 दिनों के भीतर अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित नहीं होते, तो गंभीर अपराध में अपराधी को न्यायालय द्वारा उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित किया जाता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या फ़रार अपराधी को न्यायालय में उपस्थित नही होने पर सजा दिलायी जा सकती है?

जबतक दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 195(1क)1 में वर्णित लोकसेवक के अधिकार बोध को यथा कार्यपालक लोकसेवक या न्यायायिक लोकसेवक से वर्गीकृत नही किया जाएगा तब तक द्वन्द्व की स्थिति बनी रहेगी। माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश प्रभावी रूप से सशक्त बना रहेगा। परिणामतः वे अनुसंधानक जिनके द्वारा आदेशिका का तामिला किया गया है, उनके द्वारा धारा 174A के परिप्रेक्ष्य में कानूनी कारवाई करना मुश्किलों से भरा हुआ सबित होगा। कानून कार्यपालिका को उसके परिश्रम का फल देने में मौन रहेगा। 

नयी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में इस ख़ामी को दूर कर दिया गया है। धारा 195 दंड प्रक्रिया संहिता का स्थान धारा 215 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने ले लिया है जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि 

(1) कोई भी न्यायालय निम्नलिखित का संज्ञान नहीं लेगा-

(क) 

(i) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 206 से 223 (दोनों धाराएं सम्मिलित हैं, परंतु धारा 209 को छोड़कर नया प्रावधान) (172 से 188 भारतीय दंड संहिता पुरानी की जगह) के अंतर्गत दंडनीय किसी अपराध का; या

(ii) ऐसे अपराध के लिए किसी दुष्प्रेरण या प्रयास का; या

(iii) ऐसे अपराध को करने के लिए किसी आपराधिक षडयंत्र का,

संबंधित लोक सेवक या किसी अन्य लोक सेवक, जिसके अधीन वह प्रशासनिक रूप से है या किसी अन्य लोक सेवक, जिसे संबंधित लोक सेवक द्वारा ऐसा करने के लिए प्राधिकृत किया गया है, की लिखित शिकायत के अलावा; कोई भी न्यायालय संज्ञान नहीं लेगा। 

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195(1क)(1) में प्राथमिकी दर्ज करने के हेतु शिकायतपत्र/आवेदन समर्पित करने का अधिकार केवल लोकसेवक को प्रदान किया गया था, जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 215 के अंतर्गत  उद्घोषित/फ़रार अपराधियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने के लिए लोकसेवक के बंधन को समाप्त कर अन्य परन्तुक को शर्तों से विमुक्ति प्रदान कर दी है यथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत उद्घोषित/फरार अपराधियों के विरुद्ध करवाई के लिए सरल मार्ग प्रशस्त कर दी है ।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 209 (पुराना 174A भा.द.वि.) का प्रावधान- जो कोई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 84 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित निर्दिष्ट स्थान और निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने में विफल रहता है, उसे कारावास से, जिसकी अवधि 3 वर्ष तक हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से या सामुदायिक सेवा से दंडित किया जाएगा और जहां उसी धारा की उप धारा (4) के अधीन (दस वर्ष या अधिक के कारावास से दंडनीय, या भारतीय न्याय संहिता, 2023 या किसी अन्य कानून के तहत आजीवन कारावास या मृत्युदंड) उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित करने की घोषणा की गई है, वहां उसे करावास से जिसकी अवधि 7 वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। 

उक्त विवेचना से यह तथ्य प्रतिपादित होता है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 215 उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender)/ फ़रार अपराधी के विरुद्ध शिकायतकर्ता के बिंदु पर उत्पन्न द्वन्द्व को दूर कर दिया है। अब कोई भी अपराधी अपराध करने के बाद फ़रार है, और पुलिस द्वारा उस अपराधी के विरुद्ध इश्तिहार का विधिवत तामिला करा दिया गया है, और न्यायालय द्वारा उक्त अपराधी को फ़रार अपराधी घोषित किया गया है, फिर भी अपराधी न्यायालय में उपस्थित नहीं होता तो है, तो पुलिस इस कानून का उपयोग कर धारा 209 भारतीय न्याय संहिता के अधीन प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पात्र/सशक्त है। वैसे अपराधी को न्यायिक आदेश की अनदेखी करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कर आसानी से सजा दिलवायी जा सकती है। इस धारा में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद अपराधी भले ही मूल अपराध में सजा से मुक्त हो जाये, लेकिन पुलिस इस कानून के तहत उस फरार अपराधी को न्यायालय आदेश की अवमानना में सजा दिलाने में कामयाब हो जाएगी। इस प्रकार की करवाई से अपराधियों में क़ानून पालन करने की मनोवृति बढ़ेगी और क़ानून का सशक्त साम्राज्य स्थापित हो सकेगा।

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