Author: सोनालाल सिंह, पुलिस उपाधीक्षक (से० नि०), सुबोध कुमार, पुलिस उपाधीक्षक(रक्षित), गोपालगंज | Date: 2025-04-16 11:12:26

भारतीय न्यायायिक विचरण का मूल उद्देश्य अपराधी/अभियुक्त को दंड और पीड़ित को न्याय दिलाना है, लेकिन जब इस न्यायायिक विचरण का दुरुपयोग झूठे मुकदमे और झूठी गवाही के लिए किया जाता है, तो यह न केवल निर्दोषों की ज़िंदगी को प्रभावित करती है,अपितु कानून के प्रभाव को भी प्रभावित करता है, साथ ही समाज की नैतिकता को भी चोट पहुँचाता है।

प्रसंग : सीमा देवी बनाम चौहान परिवार

ऐसा ही एक मामला गोपालगंज व्यवहार न्यायालय के समक्ष विचरण हेतु प्रस्तुत हुआ जिसमें एक महिला वादनी सीमा देवी ने अपने पड़ोसियों – रामाशंकर चौहान, चन्द्रिका चौहान, चंदन चौहान और सरिता देवी – पर धारा 354 (स्त्री की लज्जा भंग करना), 325 (गंभीर चोट पहुंचाना) आदि जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई।

शिकायत में कहा गया कि अभियुक्तों ने मिलकर उसे मारा-पीटा, कपड़े फाड़ दिए, मंगलसूत्र छीन लिया और बेहोश करके भाग गए। इसके आधार पर अभियुक्तों पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 341, 323, 325, 354, 504/34 के तहत अनुसंधानोपरांत आरोप पत्र समर्पित किया गया।  तदोपरांत माननीय न्यायालय में विचरण की प्रक्रिया वर्षों तक चली, किंतु जब गवाही का समय आया तो सीमा देवी अपने आरोपों से मुकर गई। 

उसने कोर्ट में कहा कि – “यह मुकदमा ज़मीन विवाद के कारण झूठा दर्ज कराया गया था, अब समझौता हो गया है, मुझे कोई गवाही नहीं देनी है।”

❖ न्यायिक विचारण पर प्रभाव

इस प्रकार की झूठी शिकायतें:

  • निर्दोष व्यक्तियों की सामाजिक प्रतिष्ठा एवं मानसिक स्थिति को क्षति पहुँचाती हैं।

  • न्यायालय, पुलिस, अभियोजन पक्ष और जनता का बहुमूल्य समय नष्ट करती हैं।

  • न्यायायिक प्रणाली की विश्वसनीयता को कमज़ोर करती हैं।

  • झूठे मुकदमे असली पीड़ितों की आवाज़ को भी दबा देते हैं।

❖ प्रमुख कानूनी प्रावधान – भारतीय न्याय संहिता (BNS) के अंतर्गत

🔹 धारा 229 (पूर्ववर्ती धारा 193 IPC) – न्यायालय में झूठी गवाही देना

  • विवरण: यदि कोई व्यक्ति न्यायिक कार्यवाही के दौरान जानबूझकर झूठी गवाही देता है या झूठा साक्ष्य प्रस्तुत करता है।

  • दंड: अधिकतम 7 वर्ष की कारावास और जुर्माना। यदि झूठी गवाही से किसी को फँसाने का उद्देश्य हो, तो दंड और भी कठोर हो सकता है।

 


🔹 धारा 230 (पूर्ववर्ती धारा 194 IPC) – निर्दोष को फँसाने के लिए झूठा साक्ष्य देना

  • विवरण: यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर ऐसा झूठा साक्ष्य देता जिससे किसी निर्दोष को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है।

  • दंड:

    • यदि उक्त झूठी गवाही के आधार पर किसी निर्दोष को मृत्युदंड हो गया, तो झूठा साक्ष्य देने वाले को भी मृत्युदंड या आजीवन कारावास हो सकता है।

    • यह एक अत्यंत गंभीर अपराध है और अन्य प्रकरणों में ही देखा जाता है।

 


🔹 धारा 236 (पूर्ववर्ती धारा 199 IPC) – जानबूझकर झूठा आरोप लगाना 

  • धारा 236 BNS यह कहती है कि यदि कोई व्यक्ति न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध जानबूझकर झूठा आरोप लगाता है जिसे वह जानता है कि असत्य है, और ऐसा कथन न्यायिक रिकार्ड का भाग बन जाता है, तो यह दंडनीय अपराध है।

  • 🔹 उदाहरण:

  • यदि कोई व्यक्ति हलफनामा देकर या याचिका में किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध किसी अपराध का झूठा आरोप लगाता है, और वह कथन न्यायालय में प्रस्तुत होता है, तो यह धारा 236 BNS के अंतर्गत अपराध माना जाएगा।

  • 🔹 दंड:

  • – लगाए गए आरोप के अनुसार 

 


विशेष उल्लेखनीय धाराएँ:

🔹 धारा 217 (पूर्ववर्ती धारा 182 IPC) – लोक सेवक को झूठी सूचना देना

  • विवरण: यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को जानबूझकर झूठी जानकारी देता है जिससे वह किसी व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करे।

  • दंड: अधिकतम 1 वर्ष की कारावास, या 10000 रुपये तक जुर्माना, या दोनों।

  • टिप्पणी: यह धारा पुलिस में झूठी शिकायत दर्ज कराने पर भी लागू होती है। इसका उद्देश्य प्रशासनिक प्रणाली को झूठे मुकदमों से सुरक्षित करना है।
     

 


🔹 धारा 248 (पूर्ववर्ती धारा 211 IPC) – अपराध का झूठा आरोप लगाना

  • विवरण: यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि कोई व्यक्ति निर्दोष है, उस पर झूठा आरोप लगाता है कि उसने कोई अपराध किया है, जिससे उसकी गिरफ्तारी या अभियोजन हो सके।

  • दंड:

    • सामान्यतः: 5 वर्ष तक की कारावास और 2 लाख तक जुर्माना या दोनों।

    • यदि झूठा आरोप किसी ऐसे अपराध के लिए है जिसकी सज़ा मृत्युदंड या 7 वर्ष से अधिक है, तो अधिकतम 10 वर्ष की कारावास और जुर्माना।

  • टिप्पणी: यह एक विशेष सुरक्षा प्रावधान है जो निर्दोषों को झूठे आरोपों से बचाता है और आरोप लगाने वालों को दंडित करता है।

 

उत्तरदायित्व और समाधान

इस तरह के झूठे कृत्यों के लिये जिम्मेवार कई पक्ष होते हैं:

झूठी शिकायत करने वाला वादी / सूचक,

अन्वेषण में तथ्यानुकूल अन्वेषण नहीं करने वाले अधिकृत प्राधिकार,

प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दवाव में पक्ष रखने वाला अभियोजन प्राधिकार,

सामाजिक,राजनीतिक दबाव के तहत किए गए समझौते। 

निष्कर्ष

सीमा देवी बनाम चौहान परिवार का ही मामला एकलौता नहीं है इस तरह अनेक मामले दृष्टांत में आए है जिनमें शिकायतकर्ता अपने द्वारा लगाए गए अभियोग से मुकड़ जाते है और इसका कोपभाजन अभियुक्त बनाए गए निर्दोष लोंगों को भुगतना पड़ता है। 

ऐसी प्रवृत्ति को रोकने हेतु कठोर दंड, के प्रावधानों की आवश्यकता है, साथ ही न्यायालय को भी चाहिए कि वह स्वतः संज्ञान लेते हुए उपरोक्त धाराओ के तहत कारवाई आरंभ करे ताकि ऐसी प्रवृतियों पर अंकुश लग सके। 

न्यायालय में अभियोजन का पक्ष रख रहे प्राधिकार का विशेष दायित्व बनता है कि वह इस मुद्दे को माननीय न्यायालय के संज्ञान में लाए एवं ऐसे पक्षद्रोही सूचक के विरुद्ध कारवाई हेतु हर आवश्यक कानूनी कदम उठाए। 

अन्वेषण प्राधिकार को भी अनुसंधान के क्रम में इन तथ्यों को अभियोजनगत करना चाहिए कि झूठे मुकदमे में आरोप पत्र ही समर्पित नहीं हो और इसके लिए चिन्हित दोषियों के विरुद्ध BNS की धाराओ के तहत स्वयं के बयान पर प्राथमिकी / अभियोजन प्रतिवेदन समर्पित करने कि कारवाई की जानी चाहिए। 

"न्याय तब तक अधूरा है, जब तक झूठ बोलने वाला भी दंडित न हो।"