Author: सोनालल सिंह, पुलिस उपाधीक्षक (से० नि०) | Date: 2025-03-31 09:54:55

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध की शिकायत दर्ज कराना चाहता है, तो उसे पहले पुलिस थाने या पुलिस अधीक्षक से संपर्क करना अनिवार्य होगा। सीधे मजिस्ट्रेट के पास जाकर CrPC की धारा 156(3) के तहत FIR दर्ज करने की मांग करना मान्य नहीं होगा, जब तक कि शिकायतकर्ता CrPC की धारा 154(1) और 154(3) के तहत सभी उपलब्ध उपायों का पालन नहीं कर लेता।

क्या कहती हैं CrPC की धाराएँ?

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय "रंजीत सिंह बाथ बनाम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़" मामले की सुनवाई के दौरान दिया। इस फैसले के अनुसार:

  • CrPC की धारा 154(1): शिकायतकर्ता को पहले संबंधित पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को लिखित या मौखिक रूप से शिकायत दर्ज करानी होगी।

  • CrPC की धारा 154(3): यदि पुलिस अधिकारी FIR दर्ज करने से इनकार कर देता है, तो शिकायतकर्ता पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायत दे सकता है, जो मामले की जांच कर सकता है या अधीनस्थ अधिकारी को जांच का निर्देश दे सकता है।

  • CrPC की धारा 156(3): यदि शिकायतकर्ता को ऊपर दिए गए उपायों से राहत नहीं मिलती, तभी वह मजिस्ट्रेट के पास जाकर FIR दर्ज कराने की अपील कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और प्रभाव:- न्यायमूर्ति अभय ओक और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि मजिस्ट्रेट को FIR दर्ज करने के निर्देश देने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि शिकायतकर्ता ने CrPC की धारा 154(1) और 154(3) के तहत उपलब्ध सभी उपायों को अपनाया है। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो मजिस्ट्रेट के पास FIR दर्ज करने का आदेश देने का अधिकार नहीं होगा।

प्रियंका श्रीवास्तव केस का संदर्भ:- सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में "प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य" मामले में भी स्पष्ट किया था कि CrPC की धारा 156(3) का दुरुपयोग न हो, इसके लिए मजिस्ट्रेट को यह देखना चाहिए कि शिकायत के साथ हलफनामा संलग्न हो। इससे यह सुनिश्चित होगा कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की सत्यता की जिम्मेदारी उसी की होगी।

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अक्सर शिकायतकर्ता बिना उचित प्रक्रिया अपनाए सीधे मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दाखिल कर देते हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है। कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिकायतकर्ता ने पहले CrPC की धारा 154(1) और 154(3) के तहत पुलिस से संपर्क किया हो और इन उपायों की समाप्ति के बाद ही मजिस्ट्रेट से FIR दर्ज कराने की मांग करे।

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 156(3) के तहत आवेदन दाखिल करने से पहले शिकायतकर्ता को हलफनामा देना होगा, जिससे यह साबित हो सके कि उसने पहले से उपलब्ध सभी उपायों का पालन किया है और शिकायत में लगाए गए आरोपों की सत्यता की जिम्मेदारी लेने को तैयार है। इस कदम से झूठी शिकायतों और न्यायिक प्रक्रियाओं के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा।

फैसले का व्यापक प्रभाव:-

  • अब कोई भी व्यक्ति सीधे मजिस्ट्रेट के पास जाकर FIR दर्ज कराने की मांग नहीं कर सकता, जब तक कि उसने पुलिस थाने और पुलिस अधीक्षक के स्तर पर प्रयास न कर लिए हों।

  • इससे झूठी और दुर्भावनापूर्ण शिकायतों पर रोक लगेगी और पुलिस को पहले जांच का अवसर मिलेगा।

  • न्यायिक प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनेगी।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक व्यवस्थित और प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे झूठी शिकायतों में कमी आएगी और वास्तविक पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया अधिक सुगम होगी।