Author: The Legal Lab | Date: 2024-07-27 20:25:07

प्रयागराज, 27 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सीएमओ द्वारा जारी 60 फीसदी दिव्यांगता प्रमाणपत्र पर इस कारण अविश्वास नहीं किया जा सकता कि चार डाक्टरों की टीम में कोई आर्थोपेडिक्स डॉक्टर नहीं था। कोर्ट ने कहा यह आरोप नहीं है कि प्रमाणपत्र लेने में कोई कपट या धोखाधड़ी की गई है तो कमेटी में स्पेशलिस्ट डॉक्टर के न होने से सीएमओ की रिपोर्ट को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने सीनियर एकाउंट आफीसर पेंशन कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कम्पनी लिमिटेड के दिव्यांग याची को पारिवारिक पेंशन देने से इंकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है और याची को एक माह में पेंशन का भुगतान करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आधार पर पेंशन देने से इंकार नहीं किया जा सकता कि याची कभी पीसीओ चलाता था। वह जीविका चला सकने में समर्थ है। कोर्ट ने कहा कि शासनादेश में आश्रित दिव्यांग पुत्र-पुत्री को पारिवारिक पेंशन पाने का हकदार माना गया है और सीएमओ की रिपोर्ट में याची 60 फीसदी अक्षम माना गया है तो कभी पीसीओ चलाता था, इस कारण पेंशन देने से इंकार नहीं किया जा सकता।

यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने मोहम्मद जमील की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची के पिता कानपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कम्पनी से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें पेंशन मिल रही थी। उनकी मौत के बाद याची की मां को पारिवारिक पेंशन मिलती थी। मां की मौत के बाद आश्रित याची ने पारिवारिक पेंशन की मांग की। याची से दिव्यांगता प्रमाणपत्र लिया गया। एक कमेटी गठित की गई। कमेटी ने याची के कभी पीसीओ चलाने और डाक्टरों की टीम में आर्थोपेडिक डाक्टर न होने के आधार पर अर्जी निरस्त कर दी। जिसे चुनौती दी गई थी। नियमानुसार दिव्यांग जीविकोपार्जन में असमर्थ हैं तो उसे पारिवारिक पेंशन पाने का हक है। जिसके तहत कोर्ट ने याची को पारिवारिक पेंशन देने का निर्देश दिया है।

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