प्रयागराज, 26 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति का पासपोर्ट जब्त करना अनिवार्य नहीं है जिसके खिलाफ आपराधिक मामला लम्बित है।
कोर्ट ने कहा कि पासपोर्ट अधिनियम के तहत विधानमंडल ने जानबूझ कर ’’हो सकता है’’ शब्द का इस्तेमाल किया है। इसका अर्थ है कि कुछ परिस्थितियों में पासपोर्ट अधिकारी कारण दर्ज करके पासपोर्ट जब्त कर सकता है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में पासपोर्ट अधिकारी को पासपोर्ट जब्त ही करना है। कोर्ट ने याची का पासपोर्ट जब्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने मोहम्मद उमर की याचिका पर दिया। याची सऊदी अरब में नौकरी कर रहा था। उसकी बीबी फातिमा जहरा ने उसके खिलाफ दहेज उत्पीड़न सहित विभिन्न आरोपों में महिला थाना, अम्बेडकर नगर में मुकदमा दर्ज करा दिया। क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी ने लम्बित आपराधिक मामले के आधार पर पासपोर्ट जब्त करने का आदेश जारी कर दिया। इस आदेश को याची ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
दलील दी कि यदि पासपोर्ट धारक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही लम्बित है तो पासपोर्ट अधिकारी पासपोर्ट जब्त कर सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पासपोर्ट अधिकारी को प्रत्येक मामले में पासपोर्ट जब्त करना आवश्यक है। याची के पासपोर्ट को जब्त करना अनुचित है, जिसे कानून की नजर में बरकरार नहीं रखा जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ वैवाहिक कलह से सम्बंधित एक आपराधिक मामला लम्बित है। इस मामले की कार्यवाही पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। पक्षों के बीच सुलह की कार्यवाही प्रक्रिया में है। कोर्ट ने कहा कि पासपोर्ट को जब्त करने का निर्णय लेते समय तथ्यों पर विचार नहीं किया गया। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए 30 मई 2023 के पासपोर्ट जब्त करने के आदेश को रद्द कर दिया। इसके साथ ही छह सप्ताह की अवधि के भीतर एक नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
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