प्रयागराज, 23 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यह स्थापित विधि सिद्धांत है कि यदि आपराधिक केस की परिस्थितियों से स्पष्ट हो रहा हो कि विवाद की प्रकृति दीवानी प्रकृति की है तो हाईकोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 की अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल कर आपराधिक कार्यवाही रद्द कर सकता है।
इसी के साथ कोर्ट ने मऊ की कोतवाली, क्षेत्र में जमीन के बैनामे को लेकर कपट व धोखाधड़ी के आरोप में दर्ज आपराधिक केस कार्यवाही को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने चार्जशीट, कोर्ट के संज्ञान लेने के आदेश सहित सभी केस कार्यवाही रद्द कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने श्रीमती सेवाती देवी व 6 अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
याची का कहना था कि जमीन बैनामे को लेकर हुए लेन-देन के सिविल वाद को आपराधिक केस में तब्दील किया गया है। हालांकि कि केस की विवेचना के दौरान दोनों पक्षों में समझौता भी हो गया। शिकायतकर्ता ने अपने बयान में कहा कि जमीन का बैनामा हो चुका है। वह केस नहीं चलाना चाहते। विवेचना अधिकारी ने अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने का आश्वासन दिया था। इसी बीच उसका तबादला हो गया और नये विवेचना अधिकारी ने बयान पर ध्यान दिए बगैर चार्जशीट दाखिल कर दी और अदालत ने संज्ञान भी ले लिया। जिसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा विवाद सिविल प्रकृति का है, कोई अपराध नहीं बनता और केस कार्यवाही रद्द कर दी।
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