प्रयागराज, 18 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि राज्य सरकार के कर्मचारियों को बर्खास्त करने, हटाने या अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने का आदेश रद्द कर सेवा बहाल कर दी गई है तो काम नहीं, तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं होता है।
कोर्ट ने कहा है कि केवल उसी स्थिति में वेतन भत्ता देने से इंकार किया जा सकता है यदि कर्मचारी ने सेवा से बाहर रहने के दौरान कहीं वेतन लेकर नौकरी की हो। किंतु प्रश्नगत मामले में सरकार का यह केस नहींं है। सेवा से बाहर रहने के दौरान याची निलम्बित भी नहीं था और विभागीय जांच में देरी नहीं की। सब कुछ नियमानुसार समय से हुआ। बर्खास्तगी के खिलाफ अपील मंजूर करते हुए उसे बरी कर बहाल कर दिया गया। ऐसे में सेवा से बाहर रहने की अवधि का वेतन भत्ता देने से इंकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने एसपी देवरिया को निर्देश दिया है कि याची को 09 जनवरी 2020 से 29 सितम्बर 2020 की अवधि के वेतन भत्ते का भुगतान छह फीसदी ब्याज सहित एक माह में करे और याची को 25 हजार रुपये हर्जाना दिया जाये। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने दिनेश प्रसाद की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
याची यूपी पुलिस में फॉलोअर था। उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस अधीनस्थ रैंक के अधिकारी (दंड और अपील) नियमावली 1991 (नियम 1991) के नियम 14 के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई और उसे आरोप पत्र दिया गया। याची पर आरोप था कि वह अधिकारियों को सूचित किए बिना एवं बिना किसी छुट्टी के ड्यूटी से अनुपस्थित था और भूख हड़ताल पर चला गया। साथ ही अपनी मेस ड्यूटी फिर से शुरू करने से इनकार कर दिया, जिससे पुलिस बल की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
उसकी अपील पुलिस उप महानिरीक्षक गोरखपुर क्षेत्र ने स्वीकार कर ली और सेवा में बहाल कर दिया। लेकिन पुलिस अधीक्षक ने निर्देश दिया कि याची को उस अवधि के लिए वेतन का भुगतान नहीं किया जाएगा। जिस दौरान वह सेवा से बाहर था। बर्खास्तगी का आदेश नो वर्क नो पे के सिद्धांत पर किया गया है। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए पुलिस अधीक्षक का आदेश 11 फरवरी 24 रद्द कर दिया। साथ ही उसको उक्त अवधि के लिए उसका पूरा वेतन और भत्ते, 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से गणना कर साधारण ब्याज और रिट याचिका की लागत का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।
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