सड़क दुर्घटना: वर्तमान और प्रस्तावित कानून की नजर में
पृष्टभूमि :- तेजी और लापरवाही से वाहन चलाने पर जो दुर्घटनाएं (यथा मृत्यु हो जाना, सामान्य रूप से जख्मी होना, या गंभीर रूप से जख्मी होना) को सड़क दुर्घटना कहा जाता है। वर्तमान कानून के अनुसार धारा 279/337/338/304(A) भा0द0वि0 के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज कर अनुसंधान किया जाता है। NCRB के रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 एवं 2021 में दुर्घटनाओं की तुलनात्मक स्थिति निम्न प्रकार है:-
वर्ष कुल घटित घटना मृत्यु कारित जख्म कारित
2020 3,66,138 1,31,714 3,48,279
2021 4,12,432 1,53,972 3,84,448
वर्ष 2021 में भारत में कुल सड़क दुर्घटनाएं 4,12,432 हुई, जिसमें 1,53,972 लोंगों को जानें गवानी पड़ी, जबकि 3,84,448 लोगों को चोटें आई। 2021 में सड़क दुर्घटनाओ की संख्या 2020 की तुलना नें 12.6 प्रतिशत ज्यादा रही। इसी तरह सड़क दुर्घटनाओं मे मृत्यु और चोटों की संख्या में 2020 की तुलना में क्रमशः 16.9 और 10.39 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
मेरी समझ से दुर्घटनाओं में ज़्यादार मौतें दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को तत्काल चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण होती है। दुर्घटना कारित होने के बाद जो परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है,उससे दुर्घटना कारित करने वाला वाहन चालक किसी भी तरह दुर्घटनास्थल से भागना चाहता है। पीड़ित व्यक्ति के मदद की अभिलाषा रखने के बाद भी वह भीड़ के हत्थे चढ़ना नहीं चाहता, क्योंकि अक्सर भीड़ दुर्घटनाग्रस्त वाहन चालकों के साथ क्रूड़तापूर्ण रवैया अपनाती है। कभी कभी तो भीड़ दुर्घटना कारित वाहन चालक की जान भी ले लेती है, जिस कारण दुर्घटना कारित वाहन चालकों में भय बना रहता है। यही कारण है कि वह यथाशीघ्र दुर्घटनास्थल को छोड़ कर भागने के फिराक में रहता है। घायल व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने में सक्षम होने के बावजूद वह ऐसा नहीं कर पाता और घायल व्यक्ति घटनास्थल पर ही दम तोड़ देता है।
वर्तमान कानूनी स्थिति - भारतीय दंड संहिता की धारा 304(A) में उपेक्षापूर्ण कार्यों से मृत्यु होने पर दंड का प्रावधान किया गया है। जो कोई उतावलेपन से या उपेक्षापूर्ण तरीके से किसी ऐसे कार्य को करता है, जिससे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, जो आपराधिक मानव वध की कोटि में नहीं आता,तो वह दो वर्ष तक की अवधि के कारावास से या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
भारतीय दंड संहिता में इस धारा को संज्ञेय(Cognizable) एवं जमानतीय (Bailable) अपराध बनाया गया है, यानि किसी वाहन से दुर्घटना होने पर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो वाहन चालक के ऊपर कांड तो दर्ज होगा, लेकिन पुलिस से जमानत पाने का उसका अधिकार होगा। पुलिस उस चालक को जेल भेजना भी चाहे और वह व्यक्ति जमानत देने के लिए तैयार है, तो पुलिस चाहकर भी उसे जेल नहीं भेज सकती।
ऐसी परिस्थिति में जिस परिवार या समाज ने अपना सदस्य खोया है,उसे गुस्सा आना स्वाभाविक है। उसपर वह चालक को पकड़कर पुलिस को सुपुर्द करता है, तो पुलिस उसे जेल नहीं भेज पाती। विधि व्यवस्था के दवाब में पुलिस जेल भेज भी देती है, तो धारा जमानतीय होने के कारण न्यायालय उसे तत्काल जमानत पर छोड़ देता है। इस प्रकार की कारवाई पीड़ित पक्ष को मुंह चिढ़ाने जैसा लगता है। यही कारण है कि दुर्घटना बाद जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो लोग काफी उग्र हो जाते है एवं आक्रामक रवैया अपनाते हैं।
कभी कभी इस धारा की आड़ लेकर कुछ असामाजिक तत्व अन्य अपराध को भी जानबूझ कर अंजाम देते है, और अपराध को बड़ी आसानी से दुर्घटना साबित कर देते है। वैसे आपराधिक तत्वों को ज्ञात है कि दुर्घटना के कांडों में अपराध साबित भी हो गया तो अधिकतम दो वर्ष के कारावास की सजा होगी जो अपराध की तुलना में काफी कम है।
प्रस्तावित कानूनी स्थिति - नई प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता की धारा 104 में उपेक्षापूर्ण कार्यों से मृत्यु होने पर दंड का प्रावधान किया गया है, जिसमें सजा को बढ़ाकर दो वर्ष से सात वर्ष और जुर्माना किया गया है। इसके अलावा अपराध को संज्ञेय होने के साथ साथ अजमानतीय भी बनाया गया है। अब इन कांडों में पुलिस को जमानत देने का अधिकार नहीं होगा।
इसके अलावे इस धारा में एक और प्रावधान जोड़ा गया है। किसी दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, दुर्घटना कारित करने वाला व्यक्ति घटनास्थल छोड़ कर भाग जाता है, घटना की सूचना तत्काल पुलिस या मैजिस्ट्रैट को नहीं देता है, तो सजा बढ़ कर 10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना हो जाएगी। इस प्रकार पहले जो पीड़ित पक्ष ठगा सा महसूस करता था,अब कुछ सुकून पा सकेगा।
इतना बदलाव होने के बाद अब भी पीड़ित पक्ष अभ्युक्त पक्ष के साथ क्रूड़ता दिखाता है, तो इस संहिता में उसके लिए भी प्रावधान किया गया है।
धारा 101(2) जब पाँच या पाँच से अधिक व्यक्ति का समूह मिलकर किसी व्यक्ति की नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या कोई अन्य आधार पर हत्या कर देता है, तब ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा या ऐसे कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
दृष्टव्यता:- वर्तमान कानून एवं प्रस्तावित कानून के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक रूप से सड़क दुर्घटना को तुलित करने पर इस तथ्य का प्रकटीकरण होता है कि सड़क दुर्घटना को घटित करने वाला चालक निकटतम थाना में जाकर दुर्घटना की सूचना देने, जख्मी को इलाज के लिए पहल करने का उपक्रम करने की मनःस्थिति में आएगा। इससे जख्मी को ससमय ईलाज सुलभ हो सकेगा, साथ ही पुलिस को भी सूचना ससमय मिल सकेगा, जिससे घटनास्थल पर पहुंचकर अग्रतर कार्यवाई किया जाना सुकर हो सकेगा।
वैसे अराजक तत्व जो सड़क दुर्घटना के बाद कानून को हाथ में लेकर आगजनी, सड़क अवरुद्धता, वाहन की तोड़फोड़ करने तथा चालक को बर्बर तरीके से मौत की नींद सुलाने का दुस्साहस करते हैं, उनको कानून ऐसा सबक सिखलाने की स्थिति में है कि भविष्य में कोई फिर ऐसा कदम उठाने के लिए सोचने की भी हिम्मत नहीं करेगा।
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