मुंबई हाई कोर्ट ने कहा है कि एक बीमा कंपनी दुर्घटना पीड़ित के परिजनों को मुआवजा भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, भले ही विवादित वाहन चालक के ड्राइविंग लाइसेन्स की अवधि समाप्त हो गई है और उसे नवीनीकृत नहीं किया गया हो, क्योंकि समाप्त लाइसेन्स उसे अकुशल चालक नहीं बनाता है।
न्यायमूर्ति एस जी डिगे कि एकल पीठ ने फैसला सुनाते हुए आई सी आई सी आई लोमबार्ड जनरल इन्श्योरेन्स कंपनी लिमिटेड को नवंबर 2011 में एक दुर्धतन में मृत महिला के परिवार को मुआवजा देने का निर्देश दिया।
जस्टिस शिवकुमार डिगे ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक्सपायर्ड ड्राइविंग लाइसेंस के कारण बीमा कंपनी को किसी भी देनदारी से मुक्त कर दिया गया था। अदालत ने आगे ऐसे मामले में अपील करने के मूल दावेदार के अधिकार को बरकरार रखा।
अदालत ने कहा कि मोटर वाहन एक्ट की धारा 173 में कहा गया कि ट्रिब्यूनल के फैसले से पीड़ित कोई भी व्यक्ति अपील दायर कर सकता है। इसलिए "अपीलकर्ताओं को दावेदार होने के नाते अपील दायर करने का अधिकार है।"
मामला क्या है?
23 नवंबर 2011 को मृतक आशा बाविस्कर अपने पति के साथ मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर हड़पसर की ओर जा रही थी, तभी एक ट्रक ने उनके वाहन को ओवरटेक करने की कोशिश की, बाविस्कर ट्रक की चपेट में आ गयी और ट्रक के पिछले पहिए के नीचे आने से उसकी मौत हो गई।
ट्रिब्यूनल ने बीमा कंपनी को दायित्व से मुक्त करते हुए ट्रक मालिक को मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया था, क्योंकि ट्रक चालक का लाइसेंस दुर्घटना से चार महीने पहले समाप्त हो गया था। इस अवार्ड के खिलाफ पीड़िता के परिजनों ने बीमा कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की।
बीमा कंपनी का तर्क था कि ट्रक मालिक 'पीड़ित व्यक्ति' की परिभाषा में आएगा न कि अपीलकर्ता। पीड़ित व्यक्ति एमवी एक्ट की धारा 173 के तहत अपील दायर कर सकता है।
अदालत ने कहा-
दुर्घटना के समय उल्लंघन करने वाले ट्रक का बीमा कंपनी के साथ बीमा किया गया था। वहाँ मुआवजा के रूप में क्षतिपूर्ति करने के लिए बीमा कंपनी की संविदात्मक देयता थी। दुर्घटना के समय उल्लंघन करने वाले वाहन चालक के ड्राइविंग लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया गया था।इसका मतलब है यह नहीं है कि वह कुशल चालक नहीं था। अदालत ने कहा कि "यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि अगर दुर्घटना के समय चालक के पास प्रभावी और वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था तो बीमा कंपनी को पहले मुआवजा देना होगा और इसे उल्लंघन करने वाले वाहन के मालिक से वसूल करना होगा।"
अदालत ने कहा कि हालांकि ट्रक मालिक ने आक्षेपित आदेश को चुनौती नहीं दी तो यह नहीं कहा जा सकता कि दावेदार इसे चुनौती नहीं दे सकते। इसलिए मेरा मानना है कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति अपील दायर कर सकता है।
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