The Protection of Children from Sexual Offences Act (POCSO) के तहत जब पीड़िता ने घटना का समर्थन किया है, तब कथित आरोपी के DNA से पीडिता के योनि स्वाब (Vaginal Swab) के DNA का मिलान न हो पाना या पीडिता के योनि में वीर्य/Foreign Body का अनुपस्थित होना प्रवेशन यौन उत्पीड़न (Penetrative Sexual Assault) के अपराध को खारिज नहीं करता।
बलात्कार के मामले मे अक्सर ऐसे सवाल उठते हैं कि आरोपी के DNA से पीडिता के योनि स्वाब के DNA का मिलान कराया जाए, ताकि दोनों दोनों का सेक्शुअल संबंध स्थापित हो सके। यदि दोनों DNA का मिलान वैज्ञानिक जांच के फलस्वरूप नहीं हुआ तो अभियोजन पक्ष को साक्ष्यगत रूप से कमजोर आँकने का उपक्रम आरंभ हो जाता है।
अभी हाल ही में इसी प्रकार का एक मामला पंजाब और हरियाणा कोर्ट में आया जहां आरोपी ने इस आधार पर अग्रिम जमानत की मांग की, कि कथित आरोपी का DNA पीडिता के योनि से प्राप्त स्वाब के DNA से मेल नहीं खाता, जिस पर माननीय न्यायमूर्ति हरप्रीत कौर जीवन ने जमानत याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की कि "Keeping in view the elaborate definition of the offence of penetrative sexual assault, non-matching of the DNA of the petitioner- accused with the vaginal swab of the victim and absence of human semen from the vaginal swab of a female victim would not rule out the offence of “penetrative sexual assault” wherein the minor victim had supported her version in a statement recorded under Section 164 Cr.P.C., given her history before the Medical Officer regarding sexual assault and there is a prima facie medical opinion by the doctor that the offence sexually abusing cannot be ruled out in the medical report."
मामला एक 15 वर्षीय लड़की से बलात्कार का था, जिसमे 37 वर्षीय व्यक्ति आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका पर कोर्ट सुनवाई कर रही थी। आरोपी के खिलाफ 2022 में भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 506,456 और POCSO की धारा 4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। पीडिता ने अपने बयान में कहा था, कि आरोपी पड़ोसी उसके घर में घुस आया और उसे जबरन खेतों में ले गया और उसके साथ बलात्कार किया।
कोर्ट ने कहा कि महज, आरोपी के पिता एवं भाई द्वारा दिए गए एक आवेदन के आधार पर, जांच एजेंसी ने याचिकाकर्ता के रक्त का नमूना लेकर डीएनए का तुलनात्मक रिपोर्ट प्राप्त की, जहां पीड़िता के योनि स्वाब का DNA आरोपी पुरुष के DNA से मिलान नहीं हो पाया तथा स्वाब में मानव वीर्य भी अनुपस्थित पाया गया। उक्त रिपोर्ट को आधार बनाकर, थानाध्यक्ष ने आरोपी के विरुद्ध आरोप रद्द करने की कारवाई की। कोर्ट ने आगे कहा कि थानाध्यक्ष द्वारा दिया गया रिपोर्ट युक्तियुक्त नहीं है, और POCSO की धारा 3 और 4 के प्रावधानों के विपरीत है।
इसे और आसानी से समझने के लिए POCSO ऐक्ट की धारा 3 पर एक नजर डालते है, जहां प्रवेशन लैंगिक हमला (Penetrative Sexual Assault) को परिभाषित किया गया है-
धारा-3
प्रवेशन लैंगिक हमला(Penetrative Sexual Assault) एक व्यक्ति जब –
1) किसी सीमा तक बच्चे की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में अपना लिंग प्रवेश करता है या बच्चे को उसके साथ या अन्य किसी व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या
2) किसी सीमा तक बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा (वेजाइना, पेनिस, एनस) में कोई वस्तु या शरीर का अंग, जो लिंग नहीं हो, प्रवेश करता है या बच्चे को उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराता है; या
3) बच्चे के शरीर के किसी अंग को इस तरह से काम में लेता है, जिससे कि बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भी भाग में प्रवेश कर सके या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या
4) वह बच्चे के लिंग, योनि, गुदा या मूत्रमार्ग पर अपने मुंह को लगाता है या ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के साथ बच्चे से ऐसा कराता है तो ऐसा व्यक्ति प्रवेशन लैंगिक हमला(Penetrative Sexual Assault) करता है।
उक्त परिभाषा को विश्लेषित किया जाए तो यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि DNA किसी भी प्रकार से प्रवेशन लैंगिक हमला (Penetrative Sexual Assault) को साबित करने के लिए आवश्यक साक्ष्य नहीं है। यदि पुलिस मात्र DNA जैसे साक्ष्य पर आश्रित होकर अभियुक्त को आरोप के बंधन से मुक्त करने का प्रयास किया है तो यह कहीं से अभियोजनानुकूल नहीं है। उक्त परिभाषा के अनुसार घटना को साबित करने के लिए पीडिता के बयान को ही प्रमुखता दी जानी चाहिए, न कि मेडिकल/ फोरेंसिक रिपोर्ट को। मेडिकल रिपोर्ट/फोरेंसिक रिपोर्ट घटना को सही साबित करने के लिए सहायक हो सकता है, घटना को असत्य साबित करने के लिए इसका उपयोग में लाना, इस कानून के मूल भावना के विपरीत होगा।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक न्यायायिक निर्णय सुनील बनाम मध्यप्रदेश 2017(धारा 363, 376, 376 (2) (f) एवं 302 IPC) मे कहा है कि डीएनए परीक्षण का सकारात्मक परिणाम आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत माना जाएगा, यदि परीक्षण का परिणाम नकारात्मक है, यानी अभियोजन के प्रतिकूल है या यदि डीएनए प्रोफाइलिंग नहीं की गई है, तो रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्यों का अपना महत्व होगा।.
यदि पीडिता कोर्ट के समक्ष बयान करती है कि उसके साथ बलात्कार हुआ, तो यह माना जाना चाहिए कि उसके साथ बलात्कार हुआ है। आरोपी का दायित्व होगा कि वह हर वो साक्ष्य पेश करे जिससे प्रमाणित हो सके कि उसने पीडिता के साथ बलात्कार नहीं किया है, चूंकि साबित करने का भार अभियुक्त पर होता है। बलात्कार की घटना एक संवेदनशील मामला है, जिसका अनुसंधान करते वक्त हर जांच एजेंसी को कानून की हर पहलओं को बारीकी से ध्यान में रखना चाहिए, तदनुसार ही किसी निष्कर्ष को निरूपित किया जाना चाहिए।
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