
हाल के दिनों में बिहार पुलिस प्राधिकार पुलिसकर्मियों को कार्यकारी प्रोन्नति दी है, लेकिन इसी क्रम में कुछ पदाधिकारी/कर्मी तकनीकी दृष्टिकोण से विभागीय उपबंधों के कारण पात्रता धारित करते हुए भी प्रोन्नति के लाभ से वंचित हो गए है। वर्तमान समय में पुलिस विभाग के हर अनुशासनिक प्राधिकार के समक्ष यह अहम प्रश्न बना हुआ है कि अपचारी के लिए सजा का आधार क्या होगा? पुलिस विभाग में पुलिस उपाधीक्षक से न्यून पदाधिकारियों/कर्मियों की सजा के लिए पूर्व से ही पुलिस मैनुअल में सजा निर्धारित है, लेकिन वर्तमान समय में "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 के आने के बाद अनुशासनिक प्राधिकार संशय में आ गए हैं। यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि सजा का निर्धारण पुलिस मैनुअल के आधार पर हो या "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 के आधार पर। कभी अनुशासनिक प्राधिकार पुलिस मैनुअल को आधार बनाकर सजा का निर्धारण कर रहे हैं, तो कभी "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 को सजा का आधार मान रहे हैं।
यहां स्पष्ट करना आवश्यक है कि दोनों ही सजा के प्रभाव में भारी अंतर है, जिसका खामियाजा पदाधिकारियों/कर्मियों को उठाना पड़ रहा है। यही कारण है कि इस पदोन्नति के बहार में कई सारे पदाधिकारी/ कर्मी पदोन्नति के लाभ से वंचित हो गए है। ऐसी स्थिति में पुलिस मैनुअल एवं "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 का तुलनात्मक अध्ययन पड़ोसना समाचीन प्रतीत होता है।
तो आइए, बारी-बारी से पुलिस मैनुअल एवं "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 में प्रावधानित सजा का तुलनात्मक समीक्षा करते है।
पुलिस मैनुअल भाग 1 के अध्याय 25 में पुलिस अधिनियम 5 ,1861 की धारा 7 में स्वीकृत 10 प्रकार के विभागीय दंड की व्यवस्था की गई है।
1 बर्खास्तगी
2.सेवा से हटाया जाना
3.अनिवार्य सेवा निवृत्ति
4. पंक्तिच्युति
5. पिछली वेतन वृद्धि (यों)या अगली वेतन वृद्धि (यों)का समपहरण
6.कलांक
7.निन्दन
8. 15 दिनों तक निवास स्थान में प्रतिरोध
9. दलेल
10.अतिरिक्त गारद कर्तव्य या क्रांति कर्तव्य फटीग ड्यूटी
क्रमांक 8 और 10 में उल्लेखित दंड केवल सिपहियों /हवलदारों की पंक्ति के सदस्यों को और क्रमांक 9 में उल्लेखित दंड केवल सिपाहियों के लिए निर्धारित है।
क्रमांक 1 से 6 तक के दंड को वृहत दंड (Major Punishment) माना गया है, जबकि शेष दंड को लघु दंड (Minor Punishment) के रूप में श्रेणीकृत किया गया है।
दंड का उद्देश्य- पुलिस मैनुअल के अनुसार दंड देने का पहला उद्देश्य अधिकारी के गलत कार्यों को अभिलेख पर लाना एवं दूसरा उसे अपने आचरण और कार्य में सुधार लाने हेतु सतर्क करना है।
पुलिस मैनुअल की महानता- पुलिस मैनुअल की महानता ही कही जाएगी कि पुलिस मैनुअल एक बार में कई दंड देने के सिद्धांत के खिलाफ है। इससे कर्मी को अपने आचरण में सुधार का मौका नहीं मिलता है, साथ ही किसी भी दशा में दोषी अधिकारी के प्रतिरक्षा विवरण पर सावधानी पूर्वक विचार किए बिना ही डंडादेश पारित करने की कार्रवाई पर भी निषेध करती है। कुल मिलाकर कहे तो पुलिस मैनुअल पुलिसकर्मी को दंड देने से पहले अनुशासनिक प्राधिकार को हर प्रकार से जांच परख लेने एवं कर्मी के प्रतिरक्षा लेने के बाद ही, हर तरह से संतुष्ट हो लेने के पश्चात दंड देने का प्रावधान करती है अर्थात नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत को अंगीकार करता है।
पदोन्नति पर सजा का प्रभाव
पुलिस मैनुअल के नियम 726(3) में प्रोन्नति सूची में रखने या रोक रखने के लिए अनर्हता का प्रावधान किया गया है, जिसमें यह उल्लेखित है कि साधारणतः पिछले तीन वर्षों के भीतर किसी बृहत दंड से दंडित होने पर संबंधित कर्मी का नाम किसी प्रोन्नति सूची में नहीं रखा जाएगा। किसी अधिकारी को प्रोन्नति सूची में रखने या उसे बारे में विचार करने या फिर से विचार करने के पूर्व यह देख लेना आवश्यक है कि 3 वर्षों के अंदर उसे कोई बृहत दंड तो नहीं प्राप्त हुआ है। विशेष कारणों से प्रोन्नति देने वाला सक्षम अधिकारी इस अनहर्ता सीमा को शिथिल भी कर सकता है।
सजा के प्रभाव की गणना
पुलिस आदेश संख्या 226/91 के द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि किसी पुलिसकर्मी या पदाधिकारी को दिए गए सजा के प्रभाव की गणना घटना की तिथि से मानी जाएगी
यहां हम प्रत्येक सजा की तुलना न कर लघु सजा के रूप में चिन्हित मात्र निन्दन की सजा का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहेंगे। "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 एवं संशोधित नियमावली 2007 में कर्मियों के लिए अन्य सजा के साथ साथ लघु सजा के रूप में निन्दन का भी प्रावधान किया गया है। लेकिन जहां पुलिस मैनुअल में प्रावधानित निन्दन की सजा का प्रोन्नति पर प्रभाव शून्य है, वही "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 के निन्दन का प्रभाव पदाधिकारी/कर्मी को प्रोन्नति से लगभग चार वर्षों के लिए वंचित कर देता है। "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 की धारा "14, लघु एवं वृहत् शास्तियों की सूची में लघु शास्ति के रूप में पहला शास्ति निन्दन ही है।
(i) निन्दनः
पुलिस मैनुअल में निन्दन की सजा की गणना लघु सजा के रूप में की जाती है, जिसका पदाधिकारी/कर्मी के प्रोन्नति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, वही जब "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 की बात आती है, वहां भी निन्दन की सजा को लघु सजा के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 का निन्दन पदाधिकारी/कर्मी को पदोन्नति पर चार वर्षो के लिए विराम लगाती है। यही कारण है कि बहुत से पुलिसकर्मी निन्दन की सजा के कारण प्रोन्नति के योग्य होते हुए भी अपने पदोन्नति से वंचित हो गए हैं। "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 में निंदन की सजा का प्रभाव निम्न रूप में है
(i) निन्दन - निन्दन की प्रविष्टि आरोपों अथवा भूलचूक के वर्ष की चरित्रपुस्त में की जाएगी। जिस वर्ष के आरोपों के बाद अथवा भूल चूक के कारण निन्दन की शास्ति दी जाएगी और उस निन्दन का संबंधित सरकारी सेवक की संपुष्टि एवं पदोन्नति के मामलों पर उस वर्ष के बाद से अगले 3 वर्षों तक कुप्रभाव पड़ेगा। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी सरकारी कर्मचारी को वर्ष 2002-2003 के आरोपों या भूलचूक के कारण निन्दन की सजा दी जाती है, तो उसकी प्रविष्टि वर्ष 2002-2003 की चरित्री में होगी और इसका दुष्प्रभाव वर्ष 2003-04 से 2005-06 तक रहेगा।
ऐसा सरकारी सेवक जिसे तीन निन्दन की शास्तियाँ मिल चुकी हों, उसे प्रोन्नति योग्य तभी समझा जायेगा जब अन्तिम (तीसरे) निंदन के कुप्रभाव की अवधि समाप्त होने के बाद उस सरकारी सेवक का अगले पांच वर्षों में कम से कम तीन वर्षों का कार्य एवं आचरण उत्कृष्ट रहा हो और उसे अगले 5 वर्षों के अवधि में कोई प्रतिकूल अभियुक्त नहीं मिली है।
उदाहरणस्वरूप-यदि किसी सरकारी सेवक को दिए गए तीसरे निन्दन की शास्ति का कुप्रभाव 2002 में समाप्त होता हो और उसकी प्रोन्नति 2008 या उसके पूर्व देय होती है तो 2008 में, अर्थात अंतिम निन्दन के कुप्रभावों की समाप्ति के पाँच वर्षों के बाद उसकी प्रोन्नति देय समझी जाएगी, बशर्ते कि 2003 से 20007 तक की पाँच वर्षों की अवधि में कम से कम तीन वर्षों का कार्य एवं आचरण उत्कृष्ट रहा हो और इन पाँच वर्षों की अवधि में उसे कोई प्रतिकूल अभ्युक्ति नहीं मिली हो।
अब आप सहज ही अनुमान लगा सकते है कि पुलिस मैनुअल के अनुसार निन्दन की सजा जो प्रोन्नति के मामले में प्रभावहीन है, "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 में घटना के वर्ष को छोड़ कर अगला तीन वर्ष यानी कुल चार वर्ष प्रभावित करती है।
लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रश्न विचारणीय है कि क्या "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 पुलिसकर्मी पर प्रभावी होगा? आज पुलिस विभाग में कई अनुशासनिक प्राधिकार पुलिसकर्मियों को सजा देने के लिए "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 के प्रावधानों को अपना रहे है, ऐसी परिस्थिति में दो प्रश्न सहज ही विचारणीय हो जाते है-
1. पुलिस मैनुअल में प्रावधानित सजा को किस आदेश से और कब बिलोपित किया गया?
2. "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 में वर्णित सजा को पुलिस के लिए कब स्वीकार किया गया?
पुलिस विभाग के कार्यकलापों का सही रूप से संचालन हेतु पुलिस मैनुअल बनाया गया है, जिसमे पुलिस उपाधीक्षक से न्यून पदाधिकारियों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। पुलिस मैनुअल के किसी अंश को विलोपित या संशोधित करने का अधिकार पुलिस महानिदेशक, बिहार को है। सरकार का कोई आदेश जो मैनुअल से संबंधित है, पुलिस कर्मियों पर पुलिस मैनुअल के माध्यम से ही अधिरोपित किया जा सकता है। किसी भी आदेश को बगैर मैनुअल में समावेश किए पुलिसकर्मियों पर लागू करना यथोक्त नहीं होगा। एक प्रश्न यह भी है कि क्या "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 की जद में पुलिस आती है? "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 किन-किन सेवाओं पर लागू होगा, उसका उल्लेख "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 की धारा 3 में किया गया है, खास कर 3(d) को देखने से मामला पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है
3. Application of these Rules. – (1) These Rules shall apply to every Government Servant but shall not apply to-
(a) any member of the All India Services,
(b) any person in casual employment,
(c) any person subject to discharge from service on less than one month’s notice,
(d) any person for whom special provision is made, in respect of matter covered by these Rules, by or under any law for the time being in force or by or under any agreement entered into with the previous approval of the Government before or after the commencement of these Rules, in regard to matter covered by such special provisions.
(2) Notwithstanding anything contained in sub-rule (1), the Government of Bihar may, by order, exclude any class of Government Servants from the operation of all or any of these Rules against him.
(3) Notwithstanding anything contained in sub-rule (1), these Rules shall apply to every government servant temporarily transferred to a Service or post coming within (d) in sub-rule (1).
(4) If any doubt arises with respect to the provisions of these Rules the matter shall be referred to the Government in the Department of Personnel & Administrative Reforms, whose decision shall be final.
इस संबंध में माननीय उच्च न्यायालय, पटना के दो निर्णयों की चर्चा करना चाहेंगे। रासबिहारी पासवान बनाम स्टेट आफ बिहार एवं दीपक कुमार सिन्हा बनाम स्टेट आफ बिहार दोनों ही निर्णयों में माननीय उच्च न्यायालय, पटना ने "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 को दरकिनार करते हुए पुलिस मैनुअल को प्राथमिकता दी है। दीपक कुमार सिन्हा बनाम बिहार सरकार में माननीय उच्च न्यायालय पटना की एक टिप्पणी का उल्लेख करना चाहेंगे-
Learned counsel for the State has duly accepted that if there is a special rule in the police manual or police order, the Bihar Government Servants (Classification, Control and Appeal) Rule, 2005 will not be applicable to the extent of the conflict in view of Rule 3(d) which reads as follows:-
"3(d) any person for whom special provision is made, in respect of matter covered by these Rules, by or under any law for the time being in force or by or under any agreement entered into with the previous approval of the Government before or after the commencement of these Rules, in regard to matter covered by such special provisions."
Rule 3(d) specifically provides that if a person is covered by the special provision or by any agreement to the extent of the conflict, the employee will be covered by the special provision i.e. Bihar Police Manual. Admittedly, in terms of Police Manual, minor punishment has no effect on granting the benefit of promotion which itself appears from the order passed by the competent authority who has deprived promotion for one year.
उपरोक्त तथ्यों से स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि जिन सेवाओं के लिए विशेष नियम बने हैं, उन सेवाओं पर "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 प्रभावी नहीं होगा। बिहार पुलिस मैनुअल में पुलिस उपाधीक्षक से न्यून पदाधिकारियों के लिए सजा का प्रावधान पूर्व से ही निर्धारित है। अतः इन पदाधिकारी/कर्मियों के विरुद्ध "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 का प्रावधान लागू करना यथोक्त नहीं है।
जहां तक पुलिस निरीक्षक से पुलिस उपाधीक्षक के पद पर प्रोन्नति की बात है, वहां भी पुलिस मैनुअल के नियम ही लागू होने चाहिए, क्योंकि जबतक पुलिस निरीक्षक से पुलिस उपाधीक्षक के पद पर अधिकारी प्रोन्नत नहीं हो जाते, तबतक इन पर पुलिस मैनुअल के ही सजा का प्रभाव रहेगा। इसके बावजूद भी यदि इन पदाधिकारियों/कर्मियों के विरुद्ध "बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) (संशोधन) नियमावली, 2005 मे वर्णित सजा को अधिरोपित किया जाता है, तो यह उनके साथ न्यायप्रिय एवं तर्कसंगत पहल नहीं माना जाएगा।
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