अनुसंधान प्राधिकार यथा पुलिस और अन्य अनुसंधान एजेंसीयों को मूलतः किसी घटना की सूचना प्राप्त होने पर प्रवधानानुसार संज्ञेय अपराध (वैसे अपराध जिसमें पुलिस को बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के प्राथमिकी दर्ज करने एवं बिना वारंट प्राप्त किए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त हो) और असंज्ञेय अपराध (वैसे अपराध जिसमें पुलिस बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के न तो एफआईआर दर्ज कर सकती है न ही बिना वारंट प्राप्त किए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार ही कर सकती है) में अन्तर स्थापित करना होता है। इसी अन्तर को स्थापित करते हुए क्रमशः अनुसंधान एवं अग्रतर करवाई की जाती है। असंज्ञेय अपराध में सीआरपीसी के प्रावधान के अनुसार जांच का अधिकार सीमित है। वर्तमान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 में पुलिस को जांच करने की शक्ति से शसक्त किया गया है। जांच की यह शक्ति असंज्ञेय अपराध से भोगित पक्ष को त्वरित रुप से न्याय दिलाने में सुकर साबित होगा।
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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(3)(i) (जहां संज्ञेय अपराध की सूचना पर प्राथमिकी दर्ज करने से पूर्व पुलिस को जाँच का अधिकार दिया गया है) के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस, प्राथमिकी दर्ज करने के मामलों में ज्यादा सशक्त हो गई है, वही धारा 174 में असंज्ञेय मामलों में पुलिस को जनता के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाया गया है।
आगे बढ़ने से पहले यह देखना आवश्यक है कि असंज्ञेय मामलों के लिए दंड प्रक्रिया संहिता एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 में क्या क्या प्रावधान किए गये है, और यह दोनों संहिताओं के तुलनात्मक अध्ययन के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि नई संहिता में कौन कौन से नए प्रावधान जोड़े गए है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 असंज्ञेय मामलों में पुलिस द्वारा की जाने वाली करवाई का प्रावधान करता है।
धारा 155 के अनुसार
असंज्ञेय मामलों के बारे में इत्तिला और ऐसे मामलों का अन्वेषण –
(1) जब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को उस थाने की सीमाओं के अंदर असंज्ञेय अपराध के किए जाने की सूचना दी जाती है, तब वह ऐसी सूचना का सारांश, थाना दैनिकी में अंकित करेगा और सूचना देने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास जाने को निर्देशित करेगा।
(2) कोई पुलिस अधिकारी किसी असंज्ञेय मामले (Non Cognizable Offence) का अन्वेषण ऐसे मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना नहीं करेगा जिसे ऐसे मामले का विचारण करने की या मामले को विचारणार्थ सुपुर्द करने की शक्ति है।
(3) कोई पुलिस अधिकारी ऐसा आदेश मिलने पर (वारण्ट के बिना गिरफ्तारी करने की शक्ति के सिवाय) अन्वेषण के बारे में वैसी ही शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जैसी पुलिस थाने का भारसाधक संज्ञेय मामले (Cognizable Offence) में कर सकता है।
(4) जहाँ मामले का संबंध ऐसे दो या अधिक अपराधों से है, जिनमें से कम से कम एक संज्ञेय है, वहाँ इस बात के होते हुए भी कि अन्य अपराध असंज्ञेय है, वह मामला संज्ञेय मामला समझा जाएगा।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 174
जब किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को ऐसे स्टेशन की सीमा के भीतर किसी गैर-संज्ञेय अपराध के घटित होने की जानकारी दी जाती है, तो वह अधिकारी सूचना के सार को थाना दैनिकी में दर्ज करेगा या दर्ज कराएगा, और,-
(i) सूचना देने वाले को मजिस्ट्रेट के पास जाने को कहेगा
(ii) ऐसे सभी मामलों की दैनिक डायरी रिपोर्ट पाक्षिक रूप से मजिस्ट्रेट को अग्रेषित करेगा।(नया प्रावधान)
(उल्लेखनीय है कि गैर प्रथम इतिला रिपोर्ट मामलों के लिये अभियोजन प्रतिवेदन भेजने हेतु बिहार पुलिस मैनुअल आ०ह० प्रपत्र सं० 95, अनुसूची 47, प्रपत्र सं० 119 अ में प्रतिवेदन का प्रपत्र पूर्व से प्रवधानित है, जिसका उपयोग नहीं हो रहा था, नए प्रावधान आने के बाद यह प्रपत्र काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।)
(2) कोई भी पुलिस अधिकारी बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के किसी गैर-संज्ञेय मामले की जांच नहीं करेगा जिसे ऐसे मामले की सुनवाई करने या मामले को सुनवाई के लिए सौंपने की शक्ति है।
(3) ऐसा आदेश प्राप्त करने वाला कोई भी पुलिस अधिकारी जांच के संबंध में उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकता है (बिना वारंट के गिरफ्तार करने की शक्ति को छोड़कर) जो एक पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी किसी संज्ञेय मामले में प्रयोग कर सकता है।
(4) जहां कोई मामला दो या दो से अधिक अपराधों से संबंधित है, जिनमें से कम से कम एक संज्ञेय है, तो मामले को संज्ञेय मामला माना जाएगा, भले ही अन्य अपराध गैर-संज्ञेय हों।
उपरोक्त दोनों ही धाराओं का तुलनात्मक अध्ययन करें तो उपधारा 155(1) को छोड़कर अन्य किसी उपधाराओं में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
पहले भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 155(1) के तहत पुलिस को असंज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर पुलिस को सूचना का सार मात्र थाना दैनिकी में अंकित करने के बाद सूचक को थाना दैनिकी की प्रति उपलब्ध कराते हुए मजिस्ट्रेट के पास जाने देने का निर्देश देना था, जिसके बाद पुलिस का दायित्व समाप्त हो जाता था।
नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की मंजूरी के साथ इसे लागू होने के बाद असंज्ञेय अपराधों में पुलिस का दायित्व बढ़ जाएगा। पुलिस को अब हर असंज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर पहले की तरह सूचना को थाना दैनिकी में अंकित कर सूचक को थाना दैनिकी की प्रति उपलब्ध कराते हुए मजिस्ट्रेट के पास जाने का निर्देश देना है, साथ ही नए प्रावधान जो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 174(1)(ii) में जोड़ा गया है, के अनुसार पुलिस को हर असंज्ञेय अपराध की जांच कर जांच रिपोर्ट प्रत्येक पाक्षिक अंतराल पर मजिस्ट्रेट के पास भेजना अनिवार्य है।
पुलिस को असंज्ञेय मामलों के साथ साथ उन मामलों में भी, जो संज्ञेय कोटि के है, जिसे पुलिस ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(3)(i) में दिए गए अधिकार के तहत जांच में रखा है, की जांच भी 14 दिनों के अंदर पूरी कर लेनी है, मामला संज्ञेय कोटि में आने पर पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज की जाएगी, यदि मामला असंज्ञेय कोटि का है, फिर भी जांच प्रतिवेदन का सार थाना दैनिकी में अंकित करते हुए मजिस्ट्रेट को प्रतिवेदन भेजेगा, दोनो ही परिस्थितियों में जांच के प्रतिफल से सूचक को अवगत कराया जाएगा।
यदि आपने पूर्व का आलेख (नए कानून में प्राथमिकी (एफ.आई.आर) दर्ज करने के लिए किए गए बदलाव) पढ़ा है तो आपको ज्ञात होगा कि पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना जिसमें सजा तीन वर्ष या तीन वर्ष से ऊपर एवं सात वर्ष से कम है, में पुलिस 14 दिनों के अंदर बिना प्राथमिकी दर्ज किए जाँच कर सकती है, बशर्ते कम से कम पुलिस उपाधीक्षक स्तर के पदाधिकारी से आदेश प्राप्त कर ली गई है।
तुलनात्मक रूप से तुलित करने पर यह स्पस्ट होता है कि एक ऐसा पक्ष जो असंज्ञेय अपराध की परिधि में परिरोधित होकर पुलिस की करवाई से वंचित हो चला था, उस आयाम को कानूनी गति प्राप्त होगा, जो जन न्यायोपि होगा।
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