धर्मग्रंथ और हमारी दंड व्यवस्था
धर्म ग्रंथ एवं उनसे प्राप्त किए गए तथ्य जो भारतीय दंड संहिता (भाoदoविo)के लेखन का आधार है- यह विदित है कि भारत में अपराध के दंड के लिए जिस संहिता का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है, उस संहिता को भारतीय दंड संहिता (भाoदoविo) कहा जाता है। इस संहिता को अवलोकित करने पर यह स्पष्ट होता है कि जिन तथ्यों को इस संहिता में अंकित किया गया है, उन तथ्यों को हिन्दू धर्मग्रंथो से प्राप्त किया गया प्रतीत होता है। भारतीय दंड संहिता का आलेखन अंग्रेजी हुकूमत के समय 19वीं सदी में किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है, अंग्रेज लेखकों द्वारा भारतीय प्राचीनतम धर्म ग्रंथो को मुख्य आधार बनाकर भारतीय दंड संहिता के रूप में उपयोगित किया गया है, और संहिता को मूर्त रूप दिया है। उक्त कथन को निम्न उद्धरण के माध्यम से स्पष्ट किया जाता है-
1. औरसी भगिनी वापी भायां वापयानुजस्ययः। प्रचरेत नरः कामात् तस्य दंडों वधः स्मृतः ।।
(उद्धरण- वाल्मीकि रामायण, किष्किंधा कांड अष्टादश सर्ग)
जो पुरुष अपनी कन्या, बहन अथवा छोटे भाई की पत्नी के पास सहवास के लिए जाता है, वैसे व्यक्ति के लिए उसका वध कर देना है उपयुक्त दंड माना गया है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 100 शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब है, को वर्णित करता है।
जब किसी व्यक्ति के द्वारा बलात्संग करने के आशय से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग किया जाता है, उस परिस्थिति में उसे व्यक्ति की हत्या, निजी सुरक्षा /बलात्संग के बचाव के लिए किया जाता है, तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
2.परांच एनान प्रणुद कण्वान् जीवितयोपनान् । तमांसि यत्र गच्छन्ति तत् क्रव्यादों अजिगमं ॥
(उद्धरण-अथर्ववेद द्वितीय कांड व सूक्त (25) का (5) का एक प्रसंग)
राजा, महापापी, दुराचारी पुरुष को बांधकर अंधेरे कारागार में डाल कर दंड देता है।
भारतीय दंड विधान की धारा 53 के तहत दंड का उल्लेख किया गया है, जैसे सादा एवं कठोर श्रम के साथ दंड के अतिरिक्त कई अन्य दंडों का भी प्रावधान किया गया है।
3.जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।
तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥
(उद्धरण-रामचरित मानस, सुंदर कांड)
हनुमान जी रावण से कहते हैं, कि जिसने मेरे ऊपर प्रहार किया, अपने निजी बचाव (प्रतिरक्षा) में मैं उसके ऊपर प्रहार किया हूँ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 104 के तहत वर्णित है कि “ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है”
भारतीय दंड विधान की धारा 102 के तहत वर्णित है, शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का आरंभ और बना रहना- शरीर की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण आरंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकेत की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है।
4. न हि में परदाराणाम् दृष्टि विर्षयवर्तिनी ।
अयं चात्र मयाः दृष्टाः परदारपरिग्रहः ॥
तदिदं मार्गित तावच्छुद्धेन मनसा मया
(उद्धरण-वाल्मीकि रामायण,सुंदर कांड ग्यारह सर्ग) -हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका के राजमहल में प्रवेश किए हनुमान जी कह रहे हैं कि मेरी दृष्टि अभी तक पराई स्त्रियों पर नहीं पड़ी थी। यहां आकर परायी स्त्रियों एवं स्त्रियों का अपहरण करने वाला रावण का दर्शन हुआ है, परंतु मैं रावण के इस सारे अंतःपुर का शुद्ध हृदय से अन्वेषण किया हूँ, मेरा विचार पूर्णतः शुद्ध है।
भारतीय दंड विधान की धारा 76 -विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण, अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाला व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य- कोई बात अपराध नहीं है जो तथ्य की भूल के कारण किया गया है। जैसे हनुमान जी का माता सीता की खोज के दौरान लंका के राजमहल में प्रवेश करना जहां अन्य स्त्रियों का दर्शन जान बुझकर न हुआ बल्कि खोज के दौरान अनायास तथ्य की भूल के कारण हुआ जो अपराध नहीं है।
5. तदासद्या दशग्रीवः क्षिप्रमन्तरमास्थितः
अमियकाम वैदेही परिव्राजकरुपघृक्
(उद्धरण-वाल्मीकि रामायण,अरण्य कांड) -रावण, लक्ष्मण के चले जाने पर मौका मिलते ही वह सन्यासी का वेश धारण करके शीघ्र ही सीता के पास चला गया। रावण ने सन्यासी का वेश धारण कर रूप बदल कर प्रतिरूपण कर छल किया है।
भारतीय दंड विधान की धारा 419 के तहत वर्णित है -जो कोई प्रतिरूपण द्वारा छल करेगा वह 3 साल तक के कारावास का भागी होगा।
6. बलात् कुक्कुटवृतेन प्रर्वतस्व महाबल
आक्रम्याक्रम्य सीताम् वै तां भुड़्क्ष्व च रमस्व च महापार्श्वका।
(उद्धरण-वाल्मीकि रामायण,युद्ध कांड) -हे महाबली वीर, कुत्ता की भांति आचरण कर सीता के साथ बलात्कार कीजिए। बार बार आक्रमण कर सीता के साथ रमन कीजिए एवं उपयोग कीजिए। रावण को महापार्श्व रक्षास सीता के साथ बलात्कार करने के लिए दुष्प्रेरक बनकर उकसाता है, परंतु ब्रह्मा जी के श्राप के कारण रावण इस कृत्य (अपराध) को कारित नहीं करता है।
भारतीय दंड विधान की धारा 116 के तहत वर्णित है कि करावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण, यदि अपराध नहीं किया जाए -दंड अपराध की सजा का एक चौथाई होगा।
7. स विद्युज़्जिह्वेन सहैव तच्छिरो
धनुष्च भूमौ विनिकीर्यमाणीण
विदेहराजस्व सुता यशस्वनी
ततोबाबीत त भव में वशानुगा
(उद्धरण-वाल्मीकि रामायण,युद्ध कांड) -राक्षस विद्युज़्जिह्वेन ने रावण के कहने पर राम का कूटरचित सर एवं धनुष, पृथ्वी पर सीता के समक्ष रख दिया। रावण ने सीता से कहा कि उनका राम स्वर्ग सिधार गए, प्रमाण तुम्हारे सामने है, तुम मेरे वश में हो जाओ। रावण ने यहाँ राम के सर एवं धनुष को कूट रचित कर माता सीता के समक्ष प्रस्तुत किया है।
भारतीय दंड विधान की धारा 465 के तहत वर्णित है, कि जो कोई कूटरचना करेगा, वह दोनों भांति के कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक का हो सकेगा दंडित किया जाएगा।
उपरोक्त उद्धरणों से इतना तो स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि भारतीय दंड विधान में जो तथ्य प्रस्तुत कर सजा का निर्धारण किया गया है, वे सारे तथ्य हमारे हिन्दू धर्मग्रंथों से प्राप्त किया गया है, जिसके तहत अपराध कारित करने वालों को दंड देने का विधान किया गया है। इस प्रकार कहीं न कही भारतीय दंड विधान के सजाओ का जो निर्धारण किया गया है, उसका मुख्य आधार हिन्दू धर्मग्रंथ हीं है जिसे अंग्रेज लेखकों ने उसकी मौलिकता को अपने लेखन का आधार बना लिया है।
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