Author: सोनालाल सिंह, पुलिस उपाधीक्षक (से० नि०) | Date: 2023-10-18 09:48:57

अधिनियम(Act)/ नियम(Rule)/प्राथमिकी(FIR)/ कार्यपालक आदेश  एवं वैधिक आयाम 

प्रजातांत्रिक भारतवर्ष में अधिनियम एवं नियम को क्रमश न्यायिक/विधिक तथा कार्यपालिका शक्तियों से अधिरोपित करते हुए जनता को लाभ पोषित किया जाता है. लोक कल्याणकारी देश में दोनों का उद्देश्य एक ही होता है, जनता की हित को सुनिश्चित करना। इस प्रकार अधिनियम न्यायिक ऊर्जा से फलप्रद साबित होता है,तो नियम कार्यपालक ऊर्जा से।  

अब हम देखते हैं कि अधिनियम(Act) और नियम (Rule) में मौलिक रूप से अंतर क्या क्या है। 

  • (A) अधिनियम (Act):

    • अधिनियम एक कानूनी दस्तावेज होता है जो पुरे देश के लिए होता है। इसे केन्द्रीय विधायिका (लोकसभा और राज्यसभा एवं भारत के राष्ट्रपति) लागू करते है और  Act किसी राज्य के लिए होता है तो इसे राज्य विधायिका लागू करती है. 

    • अधिनियम एक संवैधानिक कानून का रूप होता हैं जिसे सामान्य नागरिकों के लिए पालन करना बाध्यकारी होता हैं.

    • अधिनियम का उल्लंघन करने पर दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं के तहत न्यायिक विचारण कर सिद्धदोष एवं दोषमुक्त करने की कार्रवाई की जाती है। अधिनियम को संविधान द्वारा पर्याप्त शक्ति दी गई होती है, और इसका उल्लंघन गंभीर दंडों के साथ सजा दिलाने की क्षमता रखता है.

    • अधिनियम संज्ञेय औरअसंज्ञेय, जमानतीय और अजमानतीय, सुलह के योग्य, विचारण न्यायालय की प्रकृति (यथा न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा विचारित या न्यायाधीश द्वारा विचारित) एवं सजा की अवधि तथा जुर्माना को संवेत रूप से अस्तित्व में समाहित किए हुए रहता है। 

    • अधिनियम से ही नियम का प्रकटीकरण होता है,अर्थात अधिनियम को मानसिक शक्ति माना जा सकता है, जबकि नियम को शारीरिक शक्ति। 

    • उदाहरण के तौर पर, "शस्त्र अधिनियम, 1959" और "खान एवं भूतत्व (विकास एवं विनियमन) अधिनियम-1957" दो प्रमुख अधिनियम हैं।

  • (B) नियम (Rule):

    • अधिनियम को मूर्त रूप देने के लिए नियम बनाए जाते हैं, ताकि अधिनियम को अधिष्ठा प्राप्त हो सके.

    • अधिनियम के प्रावधानों को कैसे पूर्ण किया जाए और इस क्रम में क्या-क्या प्रक्रिया(Means/ Proceeding)  अपनाई जाए, इसका प्रकटीकरण केवल और केवल नियम करता है।  

    • नियम का सृजन कार्यपालक आदेशों, एवं अधिसूचनाओं के माध्यम से किया जाता है। 

    • नियम कीअवहेलना पर कार्यपालक आदेशों से दंडित किया जाता है। 

    •  नियम तात्कालिक प्रकृति एवं समयावधि से भी आवृत हो सकता है । 

    • उदाहरण के तौर पर, "आयुध नियम 2016" और "बिहार खनिज(समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2019” दो प्रमुख नियम हैं।

(C) एक प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं, प्राथमिकी जो पुलिस द्वारा दर्ज की जाती है, उसे अधिनियम की धाराओ के अंतर्गत दर्ज करनी चाहिए या नियम के धाराओ के अंतर्गत।इस प्रश्न का उत्तर समझने से पहले कानून के कुछ पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।  

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पुलिस किन अपराधों में प्राथमिकी दर्ज कर सकती है:-

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अनुसार- पुलिस सूचना प्राप्त होने पर केवल संज्ञेय मामलों में ही बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के प्राथमिकी दर्ज कर उसका अनुसंधान कर सकेगी। 

दंड प्रक्रिया संहिता की ही धारा 2c संज्ञेय अपराधों को परिभाषित करती है:- “संज्ञेय अपराध'  ऐसा अपराध है, जिसमें, पुलिस अधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता के प्रथम अनुसूची वर्णित या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अनुसार वारण्ट के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है;

इसका अर्थ यह हुआ कि पुलिस असंज्ञेय मामलों में बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के न तो प्राथमिकी दर्ज कर सकती, और न ही बिना वारंट प्राप्त किये किसी व्यक्ति को गिरफ्तार ही कर सकती है।   

इसे हम दूसरे तरह समझने का प्रयास करते हैं। 

अभी हम एक अधिनियम खान एवं भूतत्व (विकास एवं विनियमन) अधिनियम-1957 एवं  एक नियम "बिहार खनिज(समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2021” जो इसी अधिनियम के प्रावधानों के अधीन अस्तित्व में आई है, के प्रावधानों पर ध्यान आकृष्ट कराना चाहते है।

खान एवं भूतत्व (विकास एवं विनियमन) अधिनियम-1957 की धारा 21 निम्न रूप में प्रावधान करती है। 

“Penalties 21.(6) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973, an offence under sub-section (1) shall be cognizable.”

 “22. Cognizance of offences

 "No court shall take cognizance of any offence punishable under this Act or any rules made thereunder except upon complaint in writing made by a person authorised in this behalf by the Central Government or the State Government."

कोई भी अदालत केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में अधिकृत व्यक्ति द्वारा की गई लिखित शिकायत के अलावा इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।

धारा 22 के इन तथ्य “No court shall take cognizance of any offence punishable under this Act or any rules made thereunder” पर बिहार राज्य के संदर्भ में नजर डाले तो ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय खान एवं भूतत्व (विकास एवं विनियमन) अधिनियम-1957 एवं इसके अधीन बने नियम “बिहार खनिज (समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2019” दोनों पर संज्ञान ले सकती है।

                     लेकिन प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा की गई लिखित शिकायत का आधार क्या होगा। प्राधिकृत व्यक्ति अपनी शिकायत दो तरह से कर सकता हैं-

पहला- स्वयं के जांच को आधार मान कर नियमावली के तहत कार्यपालक कार्यवाही। 

दूसरा- पुलिस रिपोर्ट को आधार मान कर।  

प्राधिकृत व्यक्ति स्वयं के जांच के आधार पर शिकायत करने के लिए स्वतंत्र है,लेकिन जब बात पुलिस की आती है और पुलिस रिपोर्ट के आधार पर प्राधिकृत व्यक्ति शिकायत दर्ज कराएगा, वैसी स्थिति में क्या पुलिस को “बिहार खनिज (समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2019” की धाराओं के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज करने एवं अनुसंधान करने का अधिकार है?

“बिहार खनिज (समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2019” एवं  2021 की अधिसूचना पर नजर डाले तो अधिसूचना का आधार Mines & Minerals (Development & Regulation) Act, 1957 को माना गया है। 

No. 04/V.MU.-20-17/21-1652/M--In exercise of the powers conferred under section 15 read with section 23 C and Section 26 of Mines & Minerals (Development & Regulation) Act, 1957 the Governor of Bihar is hereby pleased to make the following Rules regarding the Bihar Minerals (Concession, Prevention of Illegal Mining, Transportation & Storage)Rules, 2019, 2021.

पुलिस केवल संज्ञेय अपराधों में ही प्राथमिकी दर्ज करेगी एवं वैसे कांडों में ही बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के अभियुक्त की गिरफ्तारी कर सकेगी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुलिस द्वारा  “बिहार खनिज (समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2019” की  जिन धाराओं के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की जा रही है (धारा 56) क्या वह धारा संज्ञेय श्रेणी का है?

           (D) विदित हो कि “बिहार खनिज (समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2019” में धाराओं का कहीं  वर्गीकरण नहीं किया गया है, यानी “बिहार खनिज (समानुदान,अवैध खनन, परिवहन, भंडारण निवारण) नियमावली 2019” 2021 की धाराएं न तो संज्ञेय प्रकृति का है ना ही असंज्ञेय प्रकृति का। यह नियमावली बिहार सरकार द्वारा "खान एवं भूतत्व (विकास एवं विनियमन) अधिनियम-1957" में प्रदत्त शक्तियों के आधार पर इस अधिनियम को सही रूप में संचालित करने के लिए बनाया गया है। 

                       हाँ, "खान एवं भूतत्व (विकास एवं विनियमन) अधिनियम-1957" में  धाराओं को संज्ञेय एवं असंज्ञेय के रूप में बांटा गया है। "खान एवं भूतत्व (विकास एवं विनियमन) अधिनियम-1957" की धारा 21 (6) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973, an offence under sub-section (1) shall be cognizable.” धारा 4 में वर्णित प्रावधानों के उलँघन से संबंधित अपराध को संज्ञेय प्रकृति का मानती है, जहां पुलिस को कांड दर्ज कर अनुसंधान करने का अधिकार प्राप्त है, एवं ऐसे कांडों में पुलिस अंतिम प्रपत्र भी समर्पित कर सकती है, अंतिम प्रपत्र को आधार मानकर कोई भी प्राधिकृत व्यक्ति/कर्मी माननीय न्यायालय में अपना पक्ष रखकर संज्ञान हेतु अनुरोध कर सकता है, मात्र पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान नहीं होने को आधार बना कर पुलिस को अवैध उत्खनन पर प्राथमिकी दर्ज कर अनुसंधान करने से निवारित नहीं जा सकता है। 

(E) न्यायायिक दृष्टांत

  SANJAY VS STATE OF NCT OF DELHI में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश के पारा 71 मे स्पष्ट किया है 

 71. Hence, merely because initiation of proceeding for commission of an offence under the MMDR Act on the basis of complaint cannot and shall not debar the police from taking action against persons for committing theft of sand and minerals in the manner mentioned above by exercising powers under the Code of Criminal Procedure and submit a report 68 Page 69 before the Magistrate for taking cognizance against such person. In other words, in a case where there is a theft of sand and gravel from the Government land, the police can register a case, investigate the same and submit a final report under Section 173, Cr.P.C. before a Magistrate having jurisdiction for the purpose of taking cognizance as provided in Section 190 (1)(d) of the Code of Criminal Procedure.

         विवेचित तथ्य सहज एवं सरल रूप में यह निरूपित करता है कि प्राथमिकी दर्ज करने के लिए अधिनियम की धाराओं, जो संज्ञेय  प्रकृति का है वही मान्य है। नियमावली के नियम इस दक्षता बोध से हीन है, अर्थात नियम कितने भी सारगर्भित क्यों ना हो, प्राथमिकी के पन्नों पर स्थान ग्रहण नहीं कर सकते हैं, न ही न्यायिक अभिलेख में सुशोभित हो सकते हैं। अधिनियम My Lord, Order, Order शब्द को उच्चारण करने का आधार प्रदान करता है, जबकि नियम May I coming sir, or Not Coming (आदेश एवं निषेध) को पथ प्रदत्त करता है। 

“बैठ अधिनियम के घोड़े पर,

दहलीजे अदालत तक जाएगा। 

 गुनाह गिन गिन रखेगा सवाल,

 इंसाफ तौल कर आएगा।

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