कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड से मौजूदा सांसद राहुल गांधी को गुरुवार के दिन (23 मार्च 2023) गुजरात के सूरत की सेशन कोर्ट ने मोदी सरनेम विवाद में दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई है।
सूरत सेशन कोर्ट के चीफ ज्यूडिशयल मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा ने भारतीय दंड संहिता कि धारा 499 (मानहानि) और सेक्शन 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए 15000 रुपये का जुर्माना लगाया. राहुल गांधी की अर्जी पर मजिस्ट्रेट ने उन्हें तत्काल जमानत देने के साथ ही सजा को 30 के लिए सस्पेंड भी कर दिया. राहुल गांधी को अब इन दिनों के भीतर सजा के फैसले के खिलाफ अपील करनी होगी.
राहुल गांधी ने 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक में कहा था, 'सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?' बयान पर गुजरात बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने इस वक्तव्य को पूरे मोदी समाज के लिए अपमानजनक बताते हुए राहुल गांधी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
असल में राहुल गांधी ने क्या कहा था?
"सब चोरों के नाम मोदी-मोदी-मोदी कैसे हैं? नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी और अभी ढूंढेंगे तो और मोदी निकलेंगे."
- राहुल गांधी के इसी बयान के आधार पर पूर्णेश मोदी ने मामला दर्ज कराया और सेशन कोर्ट ने 23 मार्च 2023 को उन्हें दो साल की सजा सुना दी.
क्या है धारा 499
499. मानहानि -
जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है। कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, एतस्मिन् पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।
स्पष्टीकरण 1 - किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को उपहत करने के लिए आशयित हो।
स्पष्टीकरण 2 - किसी कंपनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के संबंध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा।
स्पष्टीकरण 3 - अनुकल्प के रूप में, या व्यंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा।
स्पष्टीकरण 4 - कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप को हेय न करे या उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके शील को हेय न करे या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विश्वास न कराए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्ट समझी जाती है।
दृष्टांत -
(क) क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी अवश्य चुराई है, कहता है, “य एक ईमानदार व्यक्ति हैं, उसने ख की घड़ी कभी नहीं चुराई है, जब तक कि यह अपवादों में से किसी अंतर्गत न आता हो, यह मानहानि है।
(ख ) क से पूछा जाता है कि ख की घड़ी किसने चुराई है। क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी चुराई है, य की ओर संकेत करता है। जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो, यह मानहानि है।
(ग) क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी चुराई है, य का एक चित्र खींचता है जिसमें वह ख की घड़ी लेकर भाग रहा है। जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो, यह मानहानि है।
पहला अपवाद - सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है - किसी ऐसी बात को लांछन लगाना, जो किसी व्यक्ति के संबंध में सत्य हो, मानहानि नहीं है, यदि यह लोक कल्याण के लिए हो कि वह लांछन लगाया जाए या प्रकाशित किया जाए। वह लोक कल्याण के लिए है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न है।
दूसरा अपवाद - लोक-सेवकों का लोकाचरण - उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में लोक-सेवक के आचरण के विषय में या उसके शील के विषय में, जहां तक उसका शील उस आचरण से प्रकट होता है, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
तीसरा अपवाद - किसी लोक प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ति का आचरण - किसी लोक प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में, और उसके शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
दृष्टांत -
किसी लोक प्रश्न पर सरकार को अर्जी देने में, किसी लोक प्रश्न के लिए सभा बुलाने के अपेक्षण पर हस्ताक्षर करने में, ऐसी सभा का सभापतित्व करने में या उसमें हाजिर होने में, किसी ऐसी समिति का गठन करने में या उसमें सम्मिलित होने में, जो लोक समर्थन आमंत्रित करती है, किसी ऐसे पद के किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मत देने में या उसके पक्ष में प्रचार करने में, जिसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन से लोक हितबद्ध है, य के आचरण के विषय में क द्वारा कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
चौथा अपवाद - न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोर्टों का प्रकाशन - किसी न्यायालय की कार्यवाहियों की या किन्हीं ऐसी कार्यवाहियों के परिणाम की सारतः सही रिपोर्ट को प्रकाशित करना मानहानि नहीं है।
स्पष्टीकरण - कोई जस्टिस ऑफ दि पीस या अन्य ऑफिसर, जो किसी न्यायालय में विचारण से पूर्व की प्रारंभिक जांच खुले न्यायालय में कर रहा हो, उपरोक्त धारा के अर्थ के अन्तर्गत न्यायालय है।
पाँचवाँ अपवाद - न्यायालय में विनिश्चित मामले के गुणागुण या साक्षियों तथा संपृक्त अन्य व्यक्तियों का आचरण - किसी ऐसे मामले के गुणागुण के विषय में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, जो किसी न्यायालय द्वारा विनिश्चित हो चुका हो, या किसी ऐसे मामले के पक्षकार, साक्षी या अभिकर्ता के रूप में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में या ऐसे व्यक्ति के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
दृष्टांत -
(क) क कहता है “मैं समझता हूं कि उस विचारण में य का साक्ष्य ऐसा परस्पर विरोधी है कि वह अवश्य ही मूर्ख या बेईमान होना चाहिए। यदि क ऐसा सद्भावपूर्वक कहता है तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, क्योंकि जो राय वह य के शील के संबंध में अभिव्यक्त करता है, वह ऐसी है जैसी कि साक्षी के रूप में य के आचरण से, न कि उसके आगे प्रकट होती है।
(ख) किन्तु यदि क कहता है जो कुछ य ने उस विचारण में दृढ़तापूर्वक कहा है, मैं उस पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि मैं जानता हूं कि वह सत्यवादिता से रहित व्यक्ति है तो क इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता है, क्योंकि वह राय जो वह य के शील के संबंध में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है, जो साक्षी के रूप में ये के आचरण पर आधारित नहीं है।
छठा अपवाद - लोक कृति के गुणागुण - किसी ऐसी कृति के गुणागुण के विषय में, जिसको उसके कर्ता ने लोक के निर्णय के लिए रखा हो, या उसके कर्ता के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील ऐसी कृति में प्रकट होता हो, न कि उसके आगे, कोई राय सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
स्पष्टीकरण - कोई कृति लोक के निर्णय के लिए अभिव्यक्त रूप से या कर्ता की ओर से किए गए ऐसे कार्यों द्वारा, जिनसे लोक के निर्णय के लिए ऐसा रखा जाना विवक्षित हो, रखी जा सकती है।
दृष्टांत -
(क) जो व्यक्ति पुस्तक प्रकाशित करता है, वह उस पुस्तक को लोक के निर्णय के लिए रखता है।
(ख) वह व्यक्ति जो लोक के समक्ष भाषण देता है, उस भाषण को लोक के निर्णय के लिए रखता है।
(ग) वह अभिनेता या गायक, जो किसी लोकरंगमंच पर आता है, अपने अभिनय या गायन को लोक के निर्णय के लिए रखता है।
(घ) क, य द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के संबंध में कहता है य की पुस्तक मुर्खतापूर्ण है, य अवश्य कोई दुर्बल पुरुष होना चाहिए। य की पुस्तक अशिष्टतापर्ण है, य अवश्य ही अपवित्र विचारों का व्यक्ति होना चाहिए। यदि क ऐसा सद्भावपूर्वक कहता है, तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है क्योंकि वह राय जो वह, य के विषय में अभिव्यक्त करता है, य के शील से वहीं तक, न कि उससे आगे, संबंध रखती है जहां तक कि य का शील उसकी पुस्तक से प्रकट होता है।
(ङ) किन्तु यदि क कहता है मुझे इस बात का आश्चर्य नहीं है कि य की पुस्तक मूर्खतापूर्ण तथा अशिष्टतापूर्ण है। क्योंकि वह एक दुर्बल और लम्पट व्यक्ति है। क इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता क्योंकि वह राय, जो कि वह य के शील के विषय में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है जो य की पुस्तक पर आधारित नहीं है।
सातवाँ अपवाद - किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर विधिपूर्ण प्राधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक की गई परिनिन्दा - किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर कोई ऐसा प्राधिकार रखता हो, जो या तो विधि द्वारा प्रदत्त हो या उस अन्य व्यक्ति के साथ की गई किसी विधिपूर्ण संविदा से उद्धृत हो, ऐसे विषयों में, जिनसे कि ऐसा विधिपूर्ण प्राधिकार संबंधित हो, उस अन्य व्यक्ति के आचरण की सद्भावपूर्वक की गई कोई परिनिन्दा मानहानि नहीं है।
दृष्टांत -
किसी साक्षी के आचरण की या न्यायालय के किसी ऑफिसर के आचरण की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई न्यायाधीश, उन व्यक्तियों को, जो उसके आदेशों के अधीन हैं, सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई विभागाध्यक्ष, अन्य शिशुओं की उपस्थिति में किसी शिशु की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला पिता या माता, अन्य विद्यार्थियों की उपस्थिति में किसी विद्यार्थी की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला शिक्षक, जिसे विद्यार्थी के माता-पिता से प्राधिकार प्राप्त है, सेवा में शिथिलता के लिए सेवक की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला स्वामी, अपने बैंक के रोकड़िए के रूप में ऐसे रोकड़िए के आचरण के लिए सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई बैंकर इस अपवाद के अन्तर्गत आते हैं।
आठवाँ अपवाद - प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष सद्भावपूर्वक अभियोग लगाना - किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अभियोग ऐसे व्यक्तियों में से किसी व्यक्ति के समक्ष सद्भावपूर्वक लगाना, जो उस व्यक्ति के ऊपर अभियोग की विषय वस्तु के संबंध में विधिपूर्ण प्राधिकार रखते हों, मानहानि नहीं है।
दृष्टांत -
यदि क एक मजिस्ट्रेट के समक्ष य पर सद्भावपूर्वक अभियोग लगाता है, यदि क एक सेवक य के आचरण के संबंध में य के मालिक से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है, यदि क एक शिशु य के संबंध में य के पिता से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है; तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।
नौवाँ अपवाद - अपने या अन्य के हितों की संरक्षा के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक लगाया गया लांछन - किसी अन्य के शील पर लांछन लगाना मानहानि नहीं है परन्तु यह तब जब कि उसे लगाने वाले व्यक्ति के या किसी अन्य व्यक्ति के हित की संरक्षा के लिए, या लोक कल्याण के लिए, वह लांछन सद्भावपूर्वक लगाया गया हो।
दृष्टांत -
(क) क एक दुकानदार है। वह ख से, जो उसके कारबार का प्रबंध करता है, कहता है, य को कुछ मत बेचना जब तक कि वह तुम्हें नकद धन न दे दे, क्योंकि उसकी ईमानदारी के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है। यदि उसने य पर यह लांछन अपने हितों की संरक्षा के लिए सद्भावपूर्वक लगाया है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।
(ख) क, एक मजिस्ट्रेट अपने वरिष्ठ ऑफिसर को रिपोर्ट देते हुए, य के शील पर लांछन लगाता है। वहां, यदि वह लांछन सद्भावपूर्वक और लोक कल्याण के लिए लगाया गया है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।
दसवाँ अपवाद - सावधानी, जो उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे कि वह दी गई है या लोक कल्याण के लिए आशयित है - एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध सद्भावपूर्वक सावधान करना मानहानि नहीं है, परन्तु यह तब जब कि ऐसी सावधानी उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे वह दी गई हो, या किसी ऐसे व्यक्ति की भलाई के लिए, जिससे वह व्यक्ति हितबद्ध हो, या लोक कल्याण के लिए आशयित हो।
धारा 500 में कितनी सजा का प्रावधान है
500. मानहानि के लिए दण्ड -
जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
- 1951 के लोक प्रतिनिधित्व कानून के कि धारा 8(3) के मुताबिक, किसी भी जन प्रतिनिधि को दोषी करार दोषी करार दी जाने पर उसे दो साल या इससे ज्यादा की सजा होने पर उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है.
लेकिन लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि
‘रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल्स एक्ट 1951’ की धारा 8 (4) के तहत छूट असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई सांसद या विधायक दोषी करार दिया जाता है. और उन्हें 2 साल या इससे ज्यादा सजा दी गई है तो फैसले आने के तत्काल बाद ही सदस्यता खत्म हो जाएगी।
अपराधिक मामलों में दोषी करार दी जाने के बाद अब तक कई सांसद-विधायकों को सदस्यता गंवानी पड़ी है. इनमें लालू प्रसाद यादव, रशीद मसूद, अशोक चंदेल, कुलदीप सेंगर, अब्दुल्ला आजम जैसे लोगों के नाम शामिल हैं.
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