भारतीय दंड संहिता में आजीवन कारावास का क्या मतलब होता है?
(क) 14 वर्ष की अवधि का करावास
(ख) 20 वर्ष की अवधि का कारावास
(ग) जीवन पर्ययन्त्र करावास
(घ) इनमें से कोई नहीं
भारतीय दंड संहिता की धारा 53 से धारा 75 तक में विभिन्न अपराधों के संबंध में दंड की चर्चा की गई है| धारा 53 में अपराधी को दिए जाने वाले दण्ड का वर्णन किया गया है जो निम्न है –
(1) मृत्यु दण्ड –
(2) आजीवन कारावास –
(3) 1949 के अधिनियम संख्या 17 की धारा 2 द्वारा निरसित|
(4) कारावास –
कारावास तीन प्रकार का होता है –कठोर कारावास (Rigorous imprisonment) – कठोर कारावास की अवधि में व्यक्ति कठोर श्रम करने के लिए बाध्य होता है| जैसे अनाज पीसना, मिट्टी खोदना, पानी खींचना, लकड़ी काटना आदि साधारण कारावास (Simple imprisonment) – किसी व्यक्ति से, जिसे साधारण कारावास को दंडित किया गया है, कारागार में कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जब तक कि वह व्यक्ति स्वयं कार्य करने की इच्छा नहीं करता अर्थात् वह व्यक्ति कारागार मे मन चाहा कार्य कर सकता है। एकांत कारावास (Solitary Confinement)- भारतीय दंड संहिता की धारा 73 एवं 74 में एकांत कारावास के बारे में बताया गया है। एकांत कारावास की अधिकतम अवधि 3 माह निर्धारित की गई है और वह भी अंतराल से दी जाएगी, एक साथ नहीं।
(5) सम्पति का समपहरण –(Forfeiture of property)
(6) जुर्माना –
जहां तक आजीवन कारावास का प्रश्न है इसके संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दुर्योधन बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा के मामले में अभिनिर्धारित किया है कि आजीवन कारावास से अभिप्राय संपूर्ण जीवनप्रयंत कारावास से है जब तक कि समुचित सरकार द्वारा उसे कम नहीं कर दिया जाए।
भारतीय दंड संहिता की धारा 54 एवं धारा 55 में क्रमशः मृत्युदंडादेश एवं आजीवन कारावास दंडादेश के लघु करण के संबंध में चर्चा की गई है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 54 के अनुसार, हर मामले में, जिसमें मॄत्यु का दण्डादेश दिया गया हो, उस दण्ड को अपराधी की सहमति के बिना भी समुचित सरकार इस संहिता द्वारा उपबन्धित किसी अन्य दण्ड में रूपांतरित कर सकेगी।
भारतीय दंड संहिता की धारा 55 के अनुसार, हर मामले में, जिसमें आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया गया हो, अपराधी की सम्मति के बिना भी समुचित सरकार उस दण्ड को ऐसी अवधि के लिए, जो चौदह वर्ष से अधिक न हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास में लघुकॄत कर सकेगी ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 57 के अनुसार, दण्डावधियों की भिन्नों की गणना करने में, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के तुल्य गिना जाएगा ।
मोहम्मद मुन्ना बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए आई आर 2005 एस सी 3440) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि
(क) आजीवन कारावास से अभिप्राय कठोर आजीवन (जीवनपर्यंत) कारावास से है;
(ख) यह 14 या 20 वर्ष के कारावास के तुल्य नहीं है;
(ग) आजीवन कारावास से दंडित अपराधी को कारागृह में रखा जा सकता है
राज्य सरकार नियमानुसार आजीवन कारावास की अवधि को कम कर सकती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि आजीवन कारावास का मतलब जीवन पर्यंत कारावास से है जब तक की सरकार के द्वारा उक्त डंडादेश को लघुकृत न कर दिया जाए।
अतः उक्त प्रश्न का उत्तर (ग) है।
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