Author: The Legal Lab | Date: 2023-02-12 18:01:21

“क” को किसी अपराध में 3 माह की अवधि का करवास दिया गया  और  ₹100 का जुर्माना किया गया। जुर्माना अदा नहीं करने पर एक माह के कारावास का दंडादेश दिया गया। “क” जुर्माने की एवज में 15 दिन का कारावास भुगत लेता है। वह बाकी अवधि के कारावास से मुक्त होना चाहता है। क्या यह संभव है? 

हाँ, संभव है! भारतीय दंड संहिता की धारा 63 से 70 तक में जुर्माने की राशि एवं जुर्माना अदा करने की प्रक्रिया के बारे में बतलाया गया है।  

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 63 में जुर्माने की रकम के बारे में बताया गया है।  जिस धारा में जुर्माने की रकम स्पष्ट नहीं है, वहां कितना जुर्माना लगाया जा सकता है?

धारा  IPC की धारा 63 के मुताबिक ‘जहां कि वह राशि अभिव्यक्त (expressed) नहीं की गई है जितनी तक आर्थिक दण्ड/जुर्माना (Fine) हो सकता है, वहां अपराधी (offender) जिस रकम (amount) के आर्थिक दण्ड/जुर्माने का उत्तरदायी (liable) है, वह अमर्यादित (limitless) है किन्तु अत्यधिक (excessive) नहीं होगी.

वही धारा 64 में जुर्माना नहीं देने पर कारावास का दंड का प्रावधान किया गया है। धारा 64 के अनुसार कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय अपराध के हर मामले में, जिसमें अपराधी कारावास सहित या रहित, जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है,

तथा कारावास या जुर्माने अथवा केवल जुर्माने से दंडनीय अपराध के हर मामले में, जिसमें अपराधी जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है,

वह न्यायालय जो ऐसे अपराधी को दण्डादिष्ट करेगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश द्वारा निदेश दे कि जुर्माना देने में व्यतिक्रम (in default of payment of the fine) होने की दशा में, अपराधी अमुक अवधि के लिए कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास के अतिरिक्त होगा जिसके लिए वह दण्डादिष्ट हुआ है या जिससे वह दण्डादेश के लघुकरण पर दण्डनीय है।

  संहिता की धारा 55 के अनुसार किसी दंड के लिए कारावास की अधिकतम अवधि 14 वर्ष तक हो सकती है वही धारा 510 के अनुसार कारावास की न्यूनतम अवधि 24 घंटे या इससे भी कम न्यायालय के उठने तक की जा सकती है। 

  धारा 397 एवं 398 के अंतर्गत कारावास की न्यूनतम अवधि 7 वर्ष निर्धारित की गई है। 

जैसा कि ऊपर स्पष्ट है कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो केवल जुर्माने से दंडनीय होते हैं तो कुछ जुर्माने एवं कारावास दोनों से दंडनीय होते हैं। 

 अब प्रश्न उठता है कि जब अपराधी को जुर्माने से या कारावास और जुर्माना दोनों से दंडित किया जाता है और वह अपराधी जुर्माने की राशि का भुगतान करने में असमर्थ है या फिर वह उसका भुगतान नहीं करना चाहता है ऐसी अवस्था में न्यायालय उसे जुर्माने के स्थान पर कारावास का दंडादेश प्रदान करता है।  यदि जुर्माने के स्थान पर कारावास की अवधि निश्चित है तो न्यायालय के सामने कोई समस्या नहीं है लेकिन जहां जुर्माने के स्थान पर कारावास की अवधि निर्धारित नहीं है वहां न्यायालय के लिए असमंजस की स्थिति बनी रहती है और इसी का निराकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 65 से 70 तक में की गई है-

  भारतीय दंड संहिता की धारा 65 के अनुसार, यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय हो, तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम  (in default of payment of the fine) होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निदेश दे, कारावास की उस अवधि की एक चौथाई से अधिक न होगी, जो अपराध के लिए अधिकतम नियत है। 

इस संबंध में रामजश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का मामला पठनीय है। इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि जुर्माना देने में विफल अपराधियों को दिए जाने वाले कारावास के दंड की अवधि उस अपराध के लिए निर्धारित कुल दंड के एक चौथाई भाग से अधिक नहीं होगी। 

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 66 न्यायालय को इस बात के लिए अधिकृत करती है कि वह अपराधी द्वारा जुर्माना की राशि देने में विफल होने पर कठोर अथवा सादे कारावास का दंड दे सकती है बशर्ते ऐसे कारावास को देने के लिए इस संहिता अथवा किसी विशेष या स्थानीय विधि में कोई मौलिक उपवंध होना चाहिए। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 67 के अनुसार, यदि अपराध केवल आर्थिक दण्ड से दण्डनीय हो तो वह कारावास, जिसे न्यायालय आर्थिक दण्ड चुकाने में चूक होने की दशा के लिए अधिरोपित करे, सादा होगा और वह अवधि, जिसके लिए आर्थिक दण्ड चुकाने में चूक होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निदेश दे, निम्न परिमाण से अधिक नहीं होगी, अर्थात्: –

दो मास तक की कोई अवधि  अगर आर्थिक दण्ड का परिमाण पचास रुपए से अधिक न हो,

तथा चार मास तक की कोई अवधि अगर आर्थिक दण्ड का परिमाण सौ रुपए से अधिक न हो,

तथा किसी अन्य दशा में छह मास तक कोई अवधि।

 भारतीय दंड संहिता की धारा 68 के अनुसार, आर्थिक दण्ड के भुगतान में चूक होने की दशा के लिए अधिरोपित कारावास तब समाप्त हो जाएगा, जब वह आर्थिक दण्ड या तो चुका दिया जाए या विधि की प्रक्रिया द्वारा वसूल कर लिया जाए। 

  भारतीय दंड संहिता की धारा 70 के अनुसार,

 जुर्माना या उसका कोई भाग, जो चुकाया न गया हो, दण्डादेश दिए जाने के पश्चात् छह वर्ष के भीतर किसी भी समय, 

और यदि अपराधी दण्डादेश के अधीन छह वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय हो तो उस अवधि की समाप्ति से पूर्व किसी समय, वसूल किया जा सकेगा; 

और अपराधी की मॄत्यु किसी भी सम्पत्ति को, जो उसकी मॄत्यु के पश्चात् उसके ऋणों के लिए वैध रूप से दायी( Liable) हो, इस दायित्व से उन्मुक्त (free) नहीं करती। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 69.में उपबंधित हैअनुपातिक भाग के दे दिए जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान–मान लीजिए “क” एक सौ रुपए के जुर्माने और उसके न देने पर 4 माह के कारावास से दंडित किया जाता है। यहां “क” यदि  दिए गए  दंड में 1 माह का कारावास काट लेता है तो ₹75 चुका देने के बाद 1 माह के पश्चात “क” को उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि ₹75 प्रथम माह के समाप्ति पर  या किसी भी पश्चातवर्ती समय पर जबकि “क” कारावास में है चुका दिए जाएं या उदगृहीत (Levied) कर लिया जाए तो “क” को तुरंत उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि कारावास के 2 माह अवसान से पूर्व जुर्माने के ₹50 चुका दिए जाएं या उदगृहीत (Levied) कर लिए जाएं तो “क” को 2 माह के पूरे होते ही उन्मुक्त कर दिया जाएगा।  यदि ₹50 उन दो माह के अवसान पर या किसी भी पश्चातवर्ती  समय पर जबकि “क” कारावास में है चुका दिया जाए या उदगृहीत (Levied) कर लिए जाएं तो “क” को तुरंत उन्मुक्त कर दिया जाएगा।