Author: सोनालाल सिंह, पुलिस उपाधीक्षक (से० नि०) | Date: 2024-01-12 12:01:18

प्रजातांत्रिक व्यवस्था में लोकशाही का उपभोग करने वाले नागरिकों के द्वारा अहिंसक एवं तथ्यपरक रूप से किसी तथ्य का "विरोध" करना उनका नैसर्गिक प्रदत्त अधिकार है।  इसी सकारात्मक “विरोध” की उर्वरा शक्ति से जनतांत्रिक मूल्यों का प्रतिफलन होता है। यह प्रतिफलन जम्हूरियत के इकबाल को बुलंद करता है। अब आइए इस “विरोध” को भारतीय न्याय संहिता 2023 के सड़क दुर्घटना अपराध के परिपेक्ष्य में विवेचित करते हैं।

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           भारतीय न्याय संहिता को महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकृति प्रदान करते ही चालक एवं परिवहनकर्मी की ओर से विरोध के उपक्रम का प्रकटीकरण होना आरंभ हो गया। आज हम इस आलेख के माध्यम से यह समझने का प्रयास करेंगे कि मोटर चालक नए बदलाव से क्यों नाराज है ? भारतीय न्याय संहिता में हिट एंड रन के लिए सजा का क्या प्रावधान है? क्या भारतीय न्याय संहिता में की गई बदलाव वास्तव में मोटर चालकों  के विरुद्ध है? 

मोटर चालक क्यों हैं नाराज- भारतीय न्याय संहिता में हिट एंड रन मामले में जो प्रावधान किए गए हैं वे बेहद कड़े  और चालकों  के खिलाफ है। चालकों का मानना है कि इस मामले में सजा को बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है जो सही नहीं है। 

क्या है कानून- भारतीय न्याय संहिता में कहीं भी हिट एंड रन को परिभाषित नहीं किया गया है। चालकों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता एवं नई भारतीय न्याय संहिता में जो भी धाराएं हैं, और जो भी बदलाव किए हैं, उन्हें एक-एक कर समझना आवश्यक हो जाता है। भारतीय दंड संहिता में चालकों से जुड़ी जो धाराए है, धारा 279, धारा 337, धारा 338, एक धारा जो दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तब लगायी जाती है- धारा 304a (उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना)। नई भारतीय न्याय संहिता में इन धाराओ का क्रम क्रमशः धारा 281, धारा 125(ए)(बी), धारा 106(1)(2) के रूप में वर्णित किया गया है। 

सबसे पहले हम भारतीय दंड संहिता की धारा 279 (नई धारा 281) पर नजर डालते हैं-

भारतीय दंड संहिता की धारा 279

लोक मार्ग पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना – जो कोई किसी लोक मार्ग पर ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई वाहन चलाएगा या सवार होकर हांकेगा जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा। (संज्ञेय,जमानतीय, कोई मजिस्ट्रेट)

नई भारतीय न्याय संहिता धारा 281

जो कोई किसी सार्वजनिक मार्ग पर इतने उतावलेपन या उपेक्षा से से कोई वाहन चलाता है, या सवारी करता है, मानव जीवन को खतरे में डालने या किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाने या नुकसान पहुंचाने की लापरवाही बरतने पर छह महीने तक की कैद या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है। (संज्ञेय,जमानतीय, कोई मजिस्ट्रेट)

                                           उक्त दोनों ही धाराओं पर गौर करें तो भारतीय दंड संहिता एवं नई भारतीय न्याय संहिता में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। दोनों धाराएं संज्ञेय एवं जमानतीय प्रकृति की है। दोनों ही धाराओं में पुलिस मामला दर्ज कर सकती है, तथा दोनों ही धाराओं में चालक को पुलिस जमानत दे सकती है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 337/338

 337. ऐसे कार्य द्वारा उपहति कारित करना, जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए -

जो कोई ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करने द्वारा, जिससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए, किसी व्यक्ति को उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। (संज्ञेय,जमानतीय, कोई मजिस्ट्रेट)

338. ऐसे कार्य द्वारा घोर उपहति कारित करना जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए -

जो कोई ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कार्य करने द्वारा, जिससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए, किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा। (संज्ञेय,जमानतीय, कोई मजिस्ट्रेट)

नई भारतीय न्याय संहिता धारा 125

जो कोई भी इतनी जल्दबाजी या लापरवाही से कोई कार्य करेगा जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ जाए, उसे तीन महीने तक की जेल की सजा या दो हजार पांच सौ रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है। (संज्ञेय,जमानतीय, कोई मजिस्ट्रेट)

लेकिन- 

(ए) जहां चोट पहुंचाई जाती है, उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना जो पांच हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों से दंडित किया जाएगा; (संज्ञेय,जमानतीय, कोई मजिस्ट्रेट)

(बी) जहां गंभीर चोट पहुंचाई जाती है, वहां तीन साल तक की कैद या दस हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।(संज्ञेय,जमानतीय, कोई मजिस्ट्रेट)

भारतीय दंड संहिता की धारा 304a

उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना -जो कोई उतावलेपन के या उपेक्षापूर्ण किसी ऐसे कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करेगा, जो आपराधिक मानव वध की कोटि में नहीं आता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। (संज्ञेय,जमानतीय, प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट)

नई भारतीय न्याय संहिता धारा 106

106. (1) जो कोई उतावलेपन या लापरवाही से कार्य करके किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करता है जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है दोनों में से किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि पांच वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है; (संज्ञेय,जमानतीय, प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट)

और यदि ऐसा कृत्य है चिकित्सा प्रक्रिया निष्पादित करते समय एक पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा किया जाएगा किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी देना होगा।

स्पष्टीकरण.- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" इसका मतलब एक चिकित्सा व्यवसायी है जिसके पास इसके तहत मान्यता प्राप्त कोई भी चिकित्सा योग्यता है राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 और जिसका नाम राष्ट्रीय में दर्ज किया गया है उस अधिनियम के तहत मेडिकल रजिस्टर या राज्य मेडिकल रजिस्टर।

(2) जो कोई लापरवाही से वाहन चलाकर किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है जो  गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है, और घटना के तुरंत बाद किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना दिए बिना भाग जाता है, दोनों में से किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकती है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।(संज्ञेय,अजमानतीय, प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट)

भारतीय दंड संहिता में वाहन दुर्घटना की स्थिति में धारा 279 के साथ धारा 337 तब लगाई जाती है जब दुर्घटना के कारण किसी व्यक्ति को साधारण चोट पहुँचती है, लेकिन वही जब चोट गंभीर हो जाती है तब धारा 338 लगाई जाती है। वहीं नई भारतीय न्याय संहिता लागू होने के बाद धारा 279/337/338 के स्थान पर 281/125 a/125b भारतीय न्याय संहिता लगाई जाएगी। यदि दुर्घटना के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो 304a के स्थान पर 106(1)(2) का प्रयोग किया जाएगा। दोनों ही धाराओ का तुलनात्मक अध्ययन करें तो गंभीर चोट की स्थिति में एक वर्ष के कारावास और जुर्माने में नौ हजार की बढ़ोत्तरी की गई है जबकि साधारण चोट की स्थिति में जुर्माने में मात्र चार हजार पाँच सौ रुपए की बढ़ोत्तरी देखी जा रही है- 

भारतीय दंड संहिता 

नयी भारतीय न्याय संहिता 
धारा  कारावास  जुर्माना  धारा  कारावास  जुर्माना  बढ़ोत्तरी 

279

छः माह तक  एक हजार रुपए तक  281 छः माह तक  एक हजार रुपए तक कोई परिवर्तन नहीं 
337 छः माह तक  पाँच सौ रुपए तक  125ए  छः माह तक  पाँच हजार रुपए तक  कारावास यथावत,जुर्माना में चार हजार पाँच सौ रुपए की बढ़ोत्तरी 
338 दो वर्ष तक  एक हजार रुपए तक 125बी  तीन वर्ष तक दस हजार रुपए तक एक वर्ष तक कारावास ,जुर्माना में नौ  हजार रुपए की बढ़ोत्तरी 

304a

(दुर्घटना के कारण मृत्यु की स्थिति में) 

दो वर्ष तक न्यायालय जो तय करे 

106(1)

106(2)घटना के बाद भाग जाने एवं पुलिस/मजिस्ट्रेट को सूचना नहीं देने पर (नया प्रावधान)

पाँच वर्ष तक

दस वर्ष तक 

 

 

न्यायालय जो तय करे

तीन वर्ष तक कारावास 

 

घटना के बाद भाग जाने एवं पुलिस/मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना नहीं देने पर यह धारा लागू होगी। 

 

 

 

नई कानून का वास्तविक अर्थ - उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि नई भारतीय न्याय संहिता दुर्घटना की स्थिति में चालकों के विरुद्ध कहीं से भी कड़े कानून का प्रावधान नहीं करती, बल्कि दुर्घटनाग्रस्त पीड़ितों के पक्ष में मानवीय पक्षों की वकालत करती है। जिस धारा पर सबसे अधिक विवाद है उसे धारा का गौर से अवलोकन किया जाए ”106(2) जो कोई लापरवाही से वाहन चलाकर किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है जो  गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है, और घटना के तुरंत बाद किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना दिए बिना भाग जाता है, दोनों में से किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकती है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।” तो पता चलता है कि इस धारा मानवीय पक्षों को कूट-कूट कर भरा गया है- इस धारा के तत्वों पर गौर करें -

1. लापरवाही से वाहन चलाना (चालक की लापरवाही है या नहीं माननीय न्यायालय तय करेगी)

2. वाहन चलाना जो किसी व्यक्ति के मृत्यु का कारण बनता है, यानि मृत्यु नहीं हुई तो यह धारा चालक पर लागू नहीं होगी।  

          यह धारा पूर्ण रूप से उस व्यक्ति की जान बचाने की कवायद है जो चालक वाहन से दुर्घटना ग्रस्त हुआ है। 

3.  यदि चालक दुर्घटना की सूचना मात्र (किसी भी माध्यम से) निकटतम पुलिस या मजिस्ट्रेट को दे देता है,या किसी अन्य पुलिस थाने को भी घटना की सूचना दे देता है, या थाने में जाकर आत्म समर्पण कर देता है तो वैसी स्थिति में वैसे चालक के विरुद्ध यह धारा लागू नहीं होगी। उस चालक के सूचना मात्र से यह परिलक्षित हो जाता है कि वह लापरवाह चालक नहीं है, उसने उस घायल व्यक्ति को बचाने के लिए पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचना दी है। सूचना देने की स्थिति में वह चालक धारा 106.(1) भारतीय न्याय संहिता का दोषी होगा, जो जमानतीय धारा है। वह चालक पुलिस से जमानत पाने का अधिकार पा सकेगा। यदि चालक न तो स्वयं या न ही सरकारी तंत्रों के माध्यम से घायल व्यक्ति को बचाने का प्रयास करेगा वैसे चालकों के विरुद्ध दस वर्ष तक की सजा का प्रावधान अस्वाभाविक प्रतीत नहीं होता है।   

               उपरोक्त तथ्यों को विश्लेषित करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह कानून पीड़ित पक्षों  के प्राणों की रक्षा करना चाहती है न कि सजा की कठोरता को पुष्ट कर रही है। चालक की मानवीय एवं कर्तव्यमूलक जिम्मेवारी तय की गई है, जो कर्तव्य बोध का परिचायक है ना कि उत्पीड़न का फलभागी होने का। सकारात्मक विचार व्यवहार से आगे जीत हो यही मुखरित हो रहा है अन्य तत्व मनोजनित है। 

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