“क” “ख” की मृत्यु कारित करता है। बचाव में “क” द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया जाता है कि मृत्यु कारित करते समय वह नशे के कारण कार्य की प्रकृति व उसके परिणामों को समझ पाने में असमर्थ था। क्या “क” हत्या का दोषी माना जाएगा?
जी हां “क” को हत्या का दोषी माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 85 के अनुसार
कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, को उसे करते समय मत्तता के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है, परंतु यह तब जबकि वह चीज, जिससे उसकी मत्तता हुई थी, उसके अपने ज्ञान के बिना या इच्छा के विरुद्ध दी गई थी।
इस सम्बन्ध में जेठूराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य का मामला अध्ययन योग्य है। जिसमें अभिनिर्धारित किया गया है कि एक कार्य जो कि कर्ता अपनी स्वयं की चेतना के अंतर्गत संपादित नहीं करता अपितु किसी बाहरी दबाव के अंतर्गत जिसने उसकी इच्छा को या तो नष्ट कर दिया है या उसे अपने प्रभाव में कर लिया है, करता है, उसकी इच्छा के विरुद्ध किया गया कार्य माना जाएगा।
AIR 1960 MP 242, 1960 CriLJ 1093 a {Jethuram Sukhra Nagbanshi vs State Of Madhya Pradesh on 15 October, 1959}
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