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76. विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आपको विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
77. न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश का कार्य
78. न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य
79. विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
80. विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना
81. कार्य, जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है
82. सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य
83. सात वर्ष से ऊपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य
84. विकृतचित्त व्यक्ति का कार्य
85. ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है
86. किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है
87. सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी सम्भाव्यता का ज्ञान हो
88. किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सदभावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है
89. संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य
90. सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है
91. ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है
92. सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य
93. सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना
94. वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है
95. तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य
96. प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें
97. शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार
98. ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो –
99. कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है
100. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक कब होता है
101. कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है
102. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना
103. कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है
104. ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है
105. संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना
106. घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है