थाने में किसी व्यक्ति के साथ मारपीट या अमानवीय व्यवहार को पुलिस अधिकारी का “आधिकारिक कर्तव्य” नहीं माना जा सकता।: केरल हाईकोर्ट

Author: The Legal Lab | Date: 2025-07-09 21:52:23

भूमिका

इस निर्णय के माध्यम से अदालत ने यह साफ कर दिया कि यदि कोई पुलिस अधिकारी हिरासत में रहते व्यक्ति के साथ हिंसा करता है, तो उसके विरुद्ध अभियोजन (prosecution) के लिए राज्य सरकार की पूर्व अनुमति (sanction) लेना आवश्यक नहीं है।

मामला क्या था?

यह निर्णय केरल हाईकोर्ट ने Sudha v. State of Kerala and Ors. मामले में दिया, जिसमें एक पुलिस अधिकारी पर आरोप था कि उसने शिकायतकर्ता और उसकी गर्भवती बहन को थाने में बुलाकर शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। शिकायत के अनुसार, अधिकारी ने शिकायतकर्ता को बल्ले से पीटा, सिर को दीवार में मारा और पेट व छाती पर लात मारी। साथ ही जब उसकी गर्भवती बहन बीच-बचाव करने आई तो उसके साथ भी दुर्व्यवहार किया गया। बाद में मेडिकल रिपोर्ट में चोटों की पुष्टि भी हुई।

पुलिस अधिकारी का पक्ष

पुलिस अधिकारी ने अपनी ओर से तर्क दिया कि वह सरकारी कर्मचारी हैं और उन्होंने जो भी कार्य किया वह उनकी ड्यूटी का हिस्सा था। इसलिए उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की आपराधिक कार्रवाई करने से पहले CrPC की धारा 197 के तहत राज्य सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। अधिकारी ने मजिस्ट्रेट द्वारा अभियोजन को स्वीकार किए जाने को भी चुनौती दी थी।

हाईकोर्ट का निर्णय

न्यायमूर्ति के. बाबू की एकल पीठ ने इस मामले में बेहद स्पष्ट और सख्त रुख अपनाया। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को थाने में बुलाकर उसकी पिटाई करना और उसके साथ अमानवीय व्यवहार करना, पुलिस अधिकारी के आधिकारिक कर्तव्यों की श्रेणी में नहीं आता। अतः इस प्रकार के कार्यों के लिए सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।

न्यायालय की टिप्पणी

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि सरकारी कर्मचारी अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कोई अपराध करता है, विशेष रूप से ऐसा अपराध जो उसके कर्तव्य के दायरे से बाहर है, तो वह अभियोजन से छूट पाने का हकदार नहीं हो सकता। अदालत ने माना कि ऐसी परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत स्वीकार करना बिल्कुल उचित है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

निष्कर्ष

केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही तय करने और आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि कानून के नाम पर अमानवीयता को छूट नहीं दी जा सकती। यदि कोई पुलिस अधिकारी अपनी सीमाएं लांघता है, तो उसे आम नागरिक की तरह कानून का सामना करना पड़ेगा—और इसके लिए राज्य सरकार की अनुमति लेना आवश्यक नहीं होगा।

केस संक्षेप:

  • मामला: Sudha v. State of Kerala and Ors.

  • न्यायाधीश: न्यायमूर्ति के. बाबू

  • याचिका: CrPC धारा 197 के तहत अभियोजन पर रोक लगाने हेतु

  • निर्णय: पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं, अभियोजन आगे बढ़ेगा

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