सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कानूनी अनुसंधान (लीगल रिसर्च) के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि AI-संचालित प्लेटफॉर्म, जैसे कि ChatGPT, कभी-कभी फर्जी केस साइटेशन और मनगढ़ंत कानूनी तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे कानूनी पेशेवरों के लिए जोखिम बढ़ जाता है।
AI केस मैनेजमेंट में सहायक, पर पूरी तरह भरोसेमंद नहीं
केन्या के सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित एक कानूनी सम्मेलन में बोलते हुए, जस्टिस गवई ने कहा कि AI केस मैनेजमेंट सिस्टम के प्रशासनिक बोझ को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने बताया कि AI-संचालित शेड्यूलिंग टूल्स को कोर्ट सिस्टम में एकीकृत करने से केस लिस्टिंग और जजों के कार्यभार संतुलित करने में मदद मिली है। इससे अदालतों के संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव हुआ है।
फर्जी केस साइटेशन और नैतिक चिंताएँ
हालाँकि, जस्टिस गवई ने कानूनी शोध के लिए AI के उपयोग से उत्पन्न नैतिक चिंताओं को भी उजागर किया। उन्होंने बताया कि कई मामलों में, वकील और शोधकर्ता अनजाने में AI-जनित जानकारी पर भरोसा कर लेते हैं, जिससे गैर-मौजूद केस लॉ या भ्रामक कानूनी मिसालों का हवाला देने की घटनाएँ सामने आई हैं। यह पेशेवर शर्मिंदगी और संभावित कानूनी परिणामों को जन्म दे सकता है।
"AI बड़ी मात्रा में कानूनी डेटा को प्रोसेस कर सकता है और त्वरित सारांश प्रदान कर सकता है, लेकिन इसमें मानवीय स्तर की समझ और स्रोतों की सत्यापन क्षमता की कमी होती है," - जस्टिस बीआर गवई।
न्यायपालिका में AI की भूमिका पर बहस
जस्टिस गवई ने इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायालयों में AI का उपयोग केवल एक सहायक उपकरण के रूप में किया जाना चाहिए, न कि न्यायिक निर्णय प्रक्रिया का स्थान लेने के लिए। उन्होंने कहा कि न्याय में नैतिकता, सहानुभूति और प्रासंगिक समझ आवश्यक होती है, जो किसी एल्गोरिदम के लिए समझना कठिन है।
उन्होंने आगाह किया कि यदि AI को न्यायिक निर्णयों में बहुत अधिक भूमिका दी जाती है, तो यह न्याय की निष्पक्षता और विश्वसनीयता के लिए खतरा बन सकता है।
निष्कर्ष
जस्टिस गवई की इस चेतावनी के बाद, कानूनी जगत में AI के उपयोग को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। क्या AI लीगल रिसर्च में एक भरोसेमंद साधन हो सकता है, या क्या इसे केवल मानवीय निर्णय प्रक्रिया के पूरक के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए? यह सवाल अभी भी विचारणीय बना हुआ है।
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