चश्मदीद गवाह के रूप में पुलिस अधिकारी का बयान पूरी तरह से प्रासंगिक (Relevant) हैं।
उक्त बातें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश VII, वैशाली हाजीपुर श्रीमति ज्योति कुमारी ने आर्म्स ऐक्ट के तहत एक फैसला देते हुए कही। मामला राघोपुर थाना कांड संख्या 60/2012 ट्राइल नंबर 316/18 धारा 25(1-B)a/35 और 26(1)/35 आर्म्स ऐक्ट से संबंधित था, जिसमें 2018 में ए सी जे एम xiv द्वारा अपीलकर्ता को 3 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 1000 रुपए का जुर्माना कि सजा सुनाई गई थी।
ट्रायल कोर्ट में अपीलकर्ता ने दोषसिद्धि को इस आधार पर चुनौती दी थी कि जिन साक्षियों का बयान लिया गया है, सभी सार्वजनिक अधिकारी (Public Officials) है, जिन्होंने interested witnesses के तौर पर अपनी गवाही दी है।
क्या था मामला
घटना का सारांस है कि दिनांक 21/05/2012 को SHO राघोपुर विजय महतो अपने सहकर्मियों के साथ ड्यूटी पर थे तभी गुप्त सूचना मिली कि कि ग्राम रघोपुर में बैजनाथ गोप और उनके साथी किसी घटना को अंजाम देने के लिए इकट्ठा हो रहें है। सूचना पर पुलिस पहुँच कर बैजनाथ गोप को आर्म्स के साथ गिरफ्तार कर दो स्वतंत्र साक्षियों के समक्ष जब्ती सूची तैयार की। उसके बाद पुलिस ने एक अन्य व्यक्ति मुकेश राय को पकड़ा और तलाशी लेने पर उसके परिसर से एक देसी राइफल और कारतूस बरामद किए गए, जिसके लिए स्थानीय गवाहों की मौजूदगी में एक और जब्ती सूची तैयार की गई। जिसके बाद दोनों अभियुक्तों के विरुद्ध आर्म्स ऐक्ट के तहत कांड दर्ज कर अग्रेतर कारवाई की गई।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया है कि विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा पारित दोषसिद्धि का आदेश कानून के साथ-साथ तथ्यों के आधार पर भी विचारणीय है। विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा स्वतंत्र गवाह के साथ-साथ जब्ती सूची के गवाह पर भी ध्यान नहीं दिया गया, जो तथ्य को रखने के लिए माननीय न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए। इसके साथ ही छापामारी दल के सदस्य ही अनुसंधानकर्ता भी है जो कानून के अनुरूप नहीं है। अनुसंधानकर्ता द्वारा जिला दंडाधिकारी से अभियोजन स्वीकृत्यादेश भी नहीं लिया गया है जो इस अधिनियम के लिए अनिवार्य है।
न्यायालय के समक्ष विचारणीय प्रश्न
i) क्या दोषसिद्धि के लिए दिनांक 15-12-2018 का आक्षेपित निर्णय और आदेश धारा 25 (1-बी) ए/35 और 26 (1)/35 आर्म्स एक्ट के तहत कथित अपराध के लिए सजा सही दी गई थी या नहीं?
ii) क्या दिनांक 15-12-2018 का आक्षेपित निर्णय और आदेश में कोई कानूनी त्रुटि है ?
उक्त दोनों तथ्यों पर निर्णय से पूर्व कोर्ट ने जिन प्रश्नों पर विचार किया वे है-
1. क्या प्रदर्श जिन्हे जब्त किया गया है वह कारगर है?
2. क्या अभियोजन के लिए सक्षम प्राधिकार से स्वीकृति ली गई है?
3. क्या जब्ती सूची अभियोजन पक्ष के गवाहों द्वारा exhibited है?
4. क्या आरोपी व्यक्तियों के पास से अवैध हथियार जब्त किए गए थे?
5. क्या अभियोजन पक्ष बिना उचित संदेह के मामले को साबित करने में सफल रहा है?
अंत में इस अपीलीय न्यायालय ने यह पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपों को विधिवत साबित किया गया और अभियुक्तों को ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया जाना सही है। इसलिए, ट्रायल कोर्ट के फैसले और सजा के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार, कोर्ट द्वारा अपील खारिज कर दी गई और निचली अदालत का फैसला और आदेश बरकरार रखा गया।
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