2 जुलाई 2014 को सुप्रीम की ओर से अर्नेश कुमार बनाम बिहार सरकार के मामले फैसला दिया गया। इसमें कोर्ट ने कहा था कि वैसा क्राइम जिसमें 7 साल से कम की सजा है उसमें तत्काल गिरफ्तारी पुलिस नहीं करेगी। पुलिस के पास कोई पीड़ित महिला शिकायत लेकर आती है तो आरोपी को पुलिस नोटिस भेजेगी और थाने बुलाकर पूछताछ करेगी।
अर्नेश कुमार दिशा निर्देश:
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय में यह सुनिश्चित करने के लिए कि पुलिस अधिकारी अभियुक्त को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार न करे और न ही मजिस्ट्रेट यंत्रवत और आकस्मिक रुप से अभिरक्षा अधिकृत करे, इस क्रम में निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए -
1. सभी राज्य सरकारें अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दें, कि वे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के अधीन अपराधपंजीकृत होने पर किसी व्यक्ति को स्वतः गिरफ्तार न करें बल्कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के संबंध मे उपबंधित निर्धारित मापदंडों के अधीन, गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे मे स्वयं को संतुष्ट करें ।
2. सभी पुलिस अधिकारियों को धारा 41 (1) (b) (ii) के अन्तर्गत चेक लिस्ट (check-list) प्रदत की जाए।
3. पुलिस अधिकारी अभियुक्त को आगे और निरोध में रखने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करते समय गिरफ्तारी के लिए आवश्यक कारण और सामग्री के साथ चेक लिस्ट को प्रस्तुत करेगा।
4. मजिस्ट्रेट अभियुक्त को निरोध प्राधिकृत करते हुए, पुलिस अधिकारी द्वारा पूर्वोक्त अनुसार प्रस्तुत रिर्पोट का अवलोकन करेगा तथा अपनी संतुष्टि को अभिलिखित करने के बाद ही मजिस्ट्रेट निरोध प्राधिकृत करेगा। I
5. अभियुक्त को गिरफ्तार न करने के निर्णय को, मामला पंजीकृत होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर, मजिस्ट्रेट के पास लिखित कारणों के साथ प्रेषित किया जाए, कारणों को अभिलिखित करते हुए जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा समयावधि बढ़ाया जा सकता है।
6. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41A की शर्तों में हाजिरी की सूचना मामला पंजीकृत होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर अभियुक्त पर तामील की जाए, जिसे लिखित में कारणों को अभिलिखित करते हुए जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
7. उपर्युक्त निर्देशों के अनुपालन में असफल रहने पर संबंधित पुलिस अधिकारी विभागीय कार्रवाई के अलावा, वे क्षेत्रीय अधिकारिता रखने वाले उच्च न्यायालय के समक्ष न्यायालय की अवमानना के दंड के लिए भी उत्तरदायी होंगे।
8. संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उपयुक्त कारणों को अभिलिखित किए बिना निरोध प्राधिकृत करने पर, समुचित उच्च न्यायालय के द्वारा विभागीय कार्यवाही के लिए उत्तरदाई होगा। हम शीघ्रता से जोड़ते हैं कि उपयुक्त निर्देशों को ना केवल दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 4 या भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अंतर्गत मामलों में लागू होंगे बल्कि ऐसे मामलों में भी लागू होंगे, जहां अपराध ऐसी अवधि के कारावास के दंडनीय है, जो 7 वर्ष से कम की हो सकती है या 7 वर्ष तक की हो सकती है चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित ।
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