अध्याय 35: अनियमित कार्यवाहियाँ
460. वे अनियमितताएँ जो कार्यवाही को दूषित नहीं करती --
यदि कोई मजिस्ट्रेट, जो निम्नलिखित बातों में से किसी को करने के लिए विधि द्वारा सशक्त नहीं है, गलती से सद्भावपूर्वक उस बात को करता है तो उसकी कार्यवाही को केवल इस आधार पर कि वह ऐसे सशक्त नहीं था अपास्त नहीं किया जाएगा, अर्थात् :
(क) धारा 94 के अधीन तलाशी-वारण्ट जारी करना;
(ख) किसी अपराध का अन्वेषण करने के लिए पुलिस को धारा 155 के अधीन आदेश देना;
(ग) धारा 176 के अधीन मृत्यु-समीक्षा करना;
(घ) अपनी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर के उस व्यक्ति को, जिसने ऐसी अधिकारिता की सीमाओं के बाहर अपराध किया है, पकड़ने के लिए धारा 187 के अधीन आदेशिका जारी करना;
(ङ) किसी अपराध का धारा 190 की उपधारा (1) के खण्ड (क) या खण्ड (ख) के अधीन संज्ञान करना;
(च) किसी मामले को धारा 192 की उपधारा (2) के अधीन हवाले करना;
(छ) धारा 306 के अधीन क्षमादान करना;
(ज) धारा 410 के अधीन मामले को वापस मंगाना और उसका स्वयं विचारण करना; अथवा
(झ) धारा 458 या धारा 459 के अधीन संपत्ति का विक्रय ।
CHAPTER XXXV: IRREGULAR PROCEEDINGS
460. Irregularities which do not vitiate proceedings -
If any Magistrate not empowered by law to do any of the following things, namely:-
(a) to issue a search warrant under section 94;
(b) to order, under section 155, the police to investigate an offence;
(c) to hold an inquest under section 176;
(d) to issue process under section 187, for the apprehension of a person within his local jurisdiction who has committed an offence outside the limits of such jurisdiction;
(e) to take cognizance of an offence under clause (a) or clause (b) of sub-section (1) of section 190;
(f) to make over a case under sub-section (2) of section 192;
(g) to tender a pardon under section 306;
(h) to recall a case and try it himself under section 410; or
(i) to sell property under section 458 or section 459, erroneously in good faith does that thing, his proceedings shall not be set aside merely on the ground of his not being so empowered.
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