437. अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी --
(1) जब कोई व्यक्ति, जिस पर अजमानतीय अपराध का अभियोग है या जिस पर यह संदेह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है किन्तु--
(i) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होते हैं कि ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दोषी है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा;
(ii) यदि ऐसा अपराध कोई संज्ञेय अपराध है और ऐसा व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया गया है, या वह तीन वर्ष या उससे अधिक के, किन्तु सात वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी संज्ञेय अपराध के लिए दो या अधिक अवसरों पर पहले दोषसिद्ध किया गया है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा ।
परन्तु न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि खण्ड (i) या खण्ड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए यदि ऐसा व्यक्ति सोलह वर्ष से कम आयु का है या कोई स्त्री या कोई रोगी या शिथिलांग व्यक्ति है :
परन्तु यह और कि न्यायालय यह भी निदेश दे सकेगा कि खण्ड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि किसी अन्य विशेष कारण से ऐसा करना न्यायोचित तथा ठीक है :
परन्तु यह और भी कि केवल यह बात कि अभियुक्त की आवश्यकता, अन्वेषण में साक्षियों द्वारा पहचाने जाने के लिए हो सकती है, जमानत मंजूर करने से इंकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगी, यदि वह अन्यथा जमानत पर छोड़ दिए जाने के लिए हकदार है और वह वचन देता है कि वह ऐसे निदेशों का, जो न्यायालय द्वारा दिए जाएँ, अनुपालन करेगा:
परन्तु यह भी कि किसी भी व्यक्ति को, यदि उस द्वारा किया गया अभिकथित अपराध मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष अथवा उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय है तो लोक अभियोजक को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना इस उपधारा के अधीन न्यायालय द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा।
(2) यदि ऐसे अधिकारी या न्यायालय को, यथास्थिति, अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं हैं कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपराध किया है किन्तु उसके दोषी होने के बारे में और जांच करने के लिए पर्याप्त आधार हैं तो अभियुक्त धारा 446क के उपबंधों के अधीन रहते हुए और ऐसी जांच लंबित रहने तक जमानत पर, या ऐसे अधिकारी या न्यायालय के स्वविवेकानुसार, इसमें इसके पश्चात् उपबंधित प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर छोड़ दिया जाएगा।
(3) जब कोई व्यक्ति, जिस पर ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की या उससे अधिक की है, दण्डनीय कोई अपराध या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6, अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुष्प्रेरण या षड़यंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है, उपधारा (1) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है तो न्यायालय यह शर्त अधिरोपित करेगा :
(क) कि ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों के अनुसार हाजिर होगा;
(ख) कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा, जिसको करने का उस पर अभियोग या संदेह है, कोई अपराध नहीं करेगा; और
(ग) कि ऐसा व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य को नहीं बिगाड़ेगा, और न्याय के हित में ऐसी अन्य शर्ते, जिसे वह ठीक समझे, भी अधिरोपित कर सकेगा
(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति को छोड़ने वाला अधिकारी या न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों या विशेष कारणों को लेखबद्ध करेगा।
(5) यदि कोई न्यायालय, जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है तो, ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
(6) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचारण, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है, उस मामले में साक्ष्य देने के लिए नियत प्रथम तारीख से साठ दिन की अवधि के अन्दर पूरा नहीं हो जाता है, तो यदि ऐसा व्यक्ति उक्त संपूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो, जब तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश न दे वह मजिस्ट्रेट को समाधानप्रद, जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।
(7) यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात् और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अभियुक्त अभिरक्षा में है, तो वह अभियुक्त को, निर्णय सुनने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बंधपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा।
437. When bail may be taken in case of non-bailable offence ---
(1) When any person accused of, or suspected of, the commission of any non-bailable offence is arrested or detained without warrant by an officer in charge of a police station or appears or is brought before a Court other than the High Court or Court of Session, he may be released on bail, but
(i) such person shall not be so released if there appear reasonable grounds for believing that he has been guilty of an offence punishable with death or imprisonment for life;
(ii) such person shall not be so released if such offence is a cognizable offence and he had been previously convicted of an offence punishable with death, imprisonment for life or imprisonment for seven years or more, or he had been previously two or more occasions of a cognizable offence punishable with imprisonment for three years or more but not less than seven years :
Provided that the Court may direct that a person referred to in clause (i) or clause (ii) be released on bail if such person is under the age of sixteen years or is a woman or is sick or infirm :
Provided further that the Court may also direct that a person referred to in clause (ii) be released on bail if it is satisfied that it is just and proper so to do for any other special reason :
Provided also that the mere fact that an accused person may be required for being identified by witnesses during investigation shall not be sufficient ground for refusing to grant bail if he is otherwise entitled to be released on bail and gives an undertaking that he shall comply with such directions as may be given by the Court:
Provided also that no person shall, if the offence alleged to have been committed by him is punishable with death, imprisonment for life, or imprisonment for seven years or more be released on bail by the Court under this sub-section without giving an opportunity of hearing to the Public Prosecutor.
(2) If it appears to such officer or Court at any stage of the investigation, inquiry or trial as the case may be, that there are not reasonable grounds for believing that the accused has committed a non-bailable offence, but that there are sufficient grounds for further inquiry into his guilt, the accused shall, subject to the provisions of section 446A and pending such inquiry, be released on bail, or, at the discretion of such officer or Court, on the execution by him of a bond without sureties for his appearance as hereinafter provided.
(3) When a person accused or suspected of the commission of an offence punishable with imprisonment which may extend to seven years or more or of an offence under Chapter VI, Chapter XVI or Chapter XVII of the Indian Penal Code (45 of 1860) or abetment of, or conspiracy, or attempt to commit, any such offence, is released on bail under sub-section (1), 3(the Court shall impose the conditions
(a) that such person shall attend in accordance with the conditions of the bond executed under this Chapter,
(b) that such person shall not commit an offence similar to the offence of which he is accused, or suspected, of the commission of which he is suspected, and
(c) that such person shall not directly or indirectly make any inducement, threat or promise to any person acquainted with the facts of the case so as to dissuade him from disclosing such facts to the Court or to any police officer or tamper with the evidence, and may also impose, in the interests of justice, such other conditions as it considers necessary.
(4) An officer or a Court releasing any person on bail under sub-section (1), or sub-section (2), shall record in writing his or its reasons or special reasons for so doing.
(5) Any Court which has released a person on bail under sub-section (1), or subsection (2), may, if it considers it necessary so to do, direct that such person be arrested and commit him to custody.
(6) If, in any case triable by a Magistrate, the trial of a person accused of any nonbailable offence is not concluded within a period of sixty days from the first date fixed for taking evidence in the case, such person shall, if he is in custody during the whole of the said period, be released on bail to the satisfaction of the Magistrate, unless for reasons to be recorded in writing, the Magistrate otherwise directs.
(7) If, at any time after the conclusion of the trial of a person accused of a nonbailable offence and before judgment is delivered the Court is of opinion that there are reasonable grounds for believing that the accused is not guilty of any such offence, it shall release the accused, if he is in custody, on the execution by him of a bond without sureties for his appearance to hear judgment delivered.
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