16. Courts of Metropolitan Magistrates -

Author: | Date: 2022-10-04 11:01:45

16. महानगर मजिस्ट्रेटों के न्यायालय -- (1) प्रत्येक महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेटों के इतने न्यायालय, ऐसे स्थानों में स्थापित किए जाएँगे जितने और जो राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे ।

(2) ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए जाएँगे।

(3) प्रत्येक महानगर मजिस्ट्रेट की अधिकारिता और शक्तियों का विस्तार महानगर क्षेत्र में सर्वत्र होगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश :

धारा 16 में उपधारा (3) के पश्चात् अग्रलिखित धारा अंत:स्थापित की जाए, यथा :-

“(4) जहाँ चीफ मेट्रोपोलिटिन का पद रिक्त है या वह बीमारी, अनुपस्थिति या अन्यथा अपने कर्तव्यों के पालन में असमर्थ है तो वहाँ मौजूद एडीशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट और अन्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट में सबसे वरिष्ठ चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के अत्यावश्यक कार्य निपटाएगा।”

[देखें उत्तरप्रदेश एक्ट संख्या 1 सन् 1984, धारा 3 (दिनांक 1-5-1984 से प्रभावशील)]

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16. Courts of Metropolitan Magistrates - (1) In every metropolitan area, there shall be established as many Courts of Metropolitan Magistrates and at such places, as the State Government may, after consultation with the High Court, by notification, specify.

(2) The presiding officers of such Courts shall be appointed by the High Court.

(3) The jurisdiction and powers of every Metropolitan Magistrate shall extend throughout the metropolitan area.

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STATE AMENDMENT

Uttar Pradesh:

In section 16, after sub-section (3), the following sub-section shall be inserted, namely:

"(4) Where the office of the Chief Metropolitan Magistrate is vacant or he is incapacitated by illness, absence or otherwise for the performance of his duties, the senior most among the Additional Chief Metropolitan Magistrates and other Metropolitan Magistrates present at the place, shall dispose of the urgent work of the Chief Metropolitan Magistrate.”

[Vide Uttar Pradesh Act 1 of 1984, sec. 3 (w.e.f. 1-5-1984)].